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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

युगान्धर-भूमि ग्रहण की दस्तक महारथी विराट 1/5 “ प्रणाम महारथी विराट ।”  वेग ने कक्ष में प्रवेश करते के साथ ही कहा तो विर...

अध्याय 13 - विधारा का ताप

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक



विधारा का ताप


शौर्य के रास्ते में अब विशाल पर्वत शृंखलाएँ आ खड़ी हुई थी, सामने से कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था उनके पार जाने का परंतु शौर्य बेधड़क आगे बढ़ते चले गये क्योंकि उन्हें इनके पार जाने का रास्ता मालूम था। कुछ ही देर में शौर्य पहाड़ियों के दर्रों में थे। घुमावदार और बहुत ही संकरे रास्तों से गुजरते हुए अंततः शौर्य उन पर्वत श्रंखलाओं को पार कर गये। इस छोटी सी घाटी में उतरते ही सामने समुद्र दिखाई देने लगा था और किनारे से हट कर पहाड़ियों में बसी चुड़ैलों का बसेरा भी। वहीं बींचो बीच एक सुन्दर सा महल भी था, थोड़ी उँचाई पर, पहाड़ से जुड़ा हुआ। बहुत बड़ा सा वह जादुई महल जैसा प्रतीत हो रहा था। भोर के समय महल के एकदम सामने से आती सूरज की किरण महल को बहुत ही आकर्षक बना दे रही थी। महल तक पहुँचने के लिए एकदम सपाट सा परंतु ढलवां रास्ता था जो पहाड़ के बीच में लगभग आधी उँचाई पर बसे उनके नगर के विशाल से दरवाजे तक जाता था और दरवाजे के दोनों ओर से ऊँची-ऊँची दीवारें पहाड़ तक जा रही थी। महल की बनावट अद्भुत थी, इसका पिछला हिस्सा पहाड़ से जुड़ा था जिसे देखने से प्रतीत होता था कि जितना महल बाहर दिखाई दे रहा है उतना ही पहाड़ के भीतर है। पहाड़ के बिल्कुल पीछे खुला समुद्र है, पहाड़ के पीछे से झाँकती सैकड़ों सुरंगें समुंद्र की ओर से दिखाई देती हैं। शायद किसी कठिन परिस्थिति में यह चुड़ैलों के सुरक्षित बाहर निकलने के लिए थी। वैसे इस स्थान के भूगोल ने इन्हें पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित कर दिया था क्योंकि तीन दिशाओं में तो इन पर्वत शृंखलाओं ने इन्हें सुरक्षा दे रखी थी, जिसे पार करने के लिए एक मात्र रास्ता जो था वह भी अत्यंत संकरा था। बची एक दिशा में समुद्र चट्टानों से अटा पड़ा था। किसी विशाल सेना के लिए भी इन बाधाओं को पार करके इस नगर तक पहुँचना आसान नहीं था। यह नगर सुरक्षा की दृष्टि से ही शायद यहाँ बसाया गया था।
शौर्य के थोड़ा आगे बढ़ते ही दो चुडैलें अचानक आस पास के पेड़ों में से निकल के उनके पास आ गई और उनको उपर से नीचे आश्चर्य से देखने लगी क्योंकि यह स्थान चुड़ैलों के लिए तो सुरक्षित हो सकता है परंतु एक मनुष्य यहाँ अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता था। ये शायद यहाँ की पहरेदार चुडैलें थी
परदेशी, कौन हो तुम और यहाँ क्या कर रहे हो।” उनमें से एक ने पूछा
मेरा नाम शौर्य है, मुझे तुम्हारी महारानी से मिलना है।” शौर्य ने कहा
आप महायोद्धा शौर्य हैं?” यह सुनकर दोनों जो अभी तक हवा में ही उड़कर बात कर रही थी धरती पर आ गई
हाँ, तुमने सही पहचानामैं ही शौर्य हूँ।” शौर्य ने हाँ में अपना सर हिलाते हुए कहा था
प्रणाम महायोद्धा शौर्य।” यह जानकर दोनों ने शौर्य को सर झुका के प्रणाम किया
प्रणाम।” जवाब में शौर्य ने भी उनका आदर स्वीकार करते हुए कहा
आप के बारे में सदा सुना था परंतु कभी देखा नहीं था इसलिए हम आपको पहचान नहीं सके इसके लिए क्षमा चाहते हैं।” उनमें से एक ने कहा
क्षमा किसलिएतुम तो केवल अपना कर्तव्य पूरा कर रही हो और जो कोई यहाँ आएगा उसके लिए तुम्हें अपनी पहचान बताना अनिवार्य है। फिर चाहे वह एक तपोवनी हो या कोई साधारण मनुष्य, तुम्हें क्षमा नहीं मांगनी चाहिए।” शौर्य ने सदा की भाँति अपने प्रभावी ढंग में कहा तो दोनों ने उनकी वाणी को सर झुका के स्वीकार किया
तो क्या तुम मुझे महारानी अजरा के पास ले चलोगी?” शौर्य ने मुसकुरा के पूछा
आप दिलसा के साथ आगे बढ़िए मैं तब तक महारानी को सूचित करती हूँ।” उनमें से एक यह कहकर महल की ओर उड़ गई
*
महल के भीतर पहले ही आँधी आ चुकी थी, रूपसी पर हमले की सूचना सभी चुड़ैलों में फैल चुकी थी और महारानी अजरा इसी विषय पर विधारा की अन्य अनुभवी चुड़ैलों से चर्चा कर रही थी
आप सभी को पता है, रूपसी पर जानलेवा हमला हुआ है और जैसा कि हम जानते हैं यह हमला क्षिराज के इशारे पर किया गया है। संयुक्त राष्ट्रों से हुई संधि का हमने आज तक पालन किया हैहमने कभी किसी मनुष्य को चोट नहीं पहुँचाई परंतु मनुष्य अपने वादे पर कायम नहीं रह सके और उन्होंने हममें से एक को मारने का प्रयास किया। भाग्य से हमारी बच्ची सुरक्षित लौट आई है परंतु क्षिराज को अब इस बात का जवाब तो देना ही होगा इसमें कोई संदेह नहीं है फिर भी इस मामले में उचित कदम उठाने के लिए मैं आप सभी से सलाह चाहती हूँ।”
 “सभी चुडैलें क्रोधित हैं माता अजरा।” उनमें से एक ने कहा। “इस पर समझौता नहीं हो सकता।”
“समर्था, मैं समझौते की बात नहीं कर रही हूँ, परंतु हमें कुछ भी तय करने से पहले इस बात का ध्यान भी रखना है कि रूपसी के प्राण बचाने वाला भी एक मनुष्य ही था।” अजरा कुछ देर चुप हो गई। “वियत्तमा, आपका क्या विचार है।”
“अजरा, मनुष्यों का यह दुस्साहस क्षमा के योग्य नहीं है। क्षिराज के इस दुस्साहस के बाद भी अगर कुछ ठोस कदम नहीं उठाया गया तो बाकी देशों को भी विपरीत संदेश जाएगा। और कहीं अगर इसे हमारी दुर्बलता के रूप में देखा गया तो… इस प्रकार की घटना फिर दुबारा भी हो सकती हैं। इन्हें अगला अवसर देना मेरी दृष्टि में ठीक नहीं होगा अजरा।” वियत्तमा जो सबसे उम्रदराज दिख रही थी, उसने कहा।
सही कह रही हैं वियत्तमा, भले ही रूपसी के प्राण एक मनुष्य ने बचाए हैं परंतु अगर वह समय पर नहीं पहुँचता तोकुछ भी हो सकता था।” वियत्तमा के बाद समर्था कहने लगी। “मनुष्य हमें कमजोर समझने लगे हैंवो भूल गये हैं कि हम क्या हैं और क्या कर सकती हैंउन्होंने हमारी अच्छाई को हमारी दुर्बलता समझा है तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल है और इस भूल का उन्हें अहसास तो होना ही चाहिए।”
हम बिल्कुल तैयार हैं माता अजराआपके आदेश भर की देर है।” वियत्तमा और समर्था की बात का समर्थन करते हुए अन्य चुड़ैलों ने भी कहा
परिणाम बहुत घातक हो सकते हैं अगर अब भी कुछ नहीं किया गया तो...” इतना कहकर समर्था कुछ क्षण सभी की प्रतिक्रिया देखने के लिए चुप हो गई। “पिछले कुछ समय में हमारी तीन चुडैलें लापता हो चुकी हैं और हमें यह तक पता नहीं है कि वो कहाँ हैंजीवित भी है कि नहीं?”
अजरा, अब कोई संदेह नहीं बचताक्षिराज ही है जो यह सब कर रहा है।” वियत्तमा ने कहा। “अब उसे उत्तर देने का समय आ गया है।”
और अगर उनके लापता होने में भी इसी का हाथ है, स्पष्ट सी बात है जैसा कि वियत्तमा ने कहातो इस हिसाब से उसने चीथी बार संधि को तोड़ा है। इस सब के बावजूद अब अगर हम चुडैलें दया दिखाएंगी तो...” समर्था के अधिकार क्षेत्र में जितना था वह बोल चुकी थी इसलिए इतना कहकर वह चुप हो गई और अपनी बगल में से झाँकते हुए अजरा की छोटी बेटी मुग्धा की ओर देखने लगी
मां, अब हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेंगे।” अजरा की छोटी बेटी मुग्धा कुछ अधिक क्रोध में थी। “इस प्रकार तो मनुष्यों में से हमारा भय ही समाप्त हो जाएगा। आज मनुष्यों की इतनी हिम्मत हो गई कि उन्होंने हमारी बच्ची रूपसी को पर ही हमला कर दियाउसके प्राण जा सकते थे।”
मुग्धा का कहना बिल्कुल सही है माता अजरा। पहले आपकी चुड़ैलों कोफिर आपके बच्चों कोतब तो वो आपके गले तक पहुँचने में भी देर नहीं लगाएंगे।” समर्था ने कहा
आप आज्ञा दीजिए माता अजरा, हम सब तैयार हैं। इस बार मनुष्यों को सबक सिखाना ही होगा।” एक साथ कई चुड़ैलों ने कहा
लड़ाई झगड़े से हर बात का समाधान नहीं होताहम यहाँ कोई सही रास्ता निकालने के लिए एकत्रित हुए हैं।” अजरा की बड़ी बेटी सुरैया इस बार बीच में बोली
सुरैया, हम जानते हैं कि युद्ध हर समस्या का समाधान नहीं है परंतु यहाँ दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है। हमला रुपसी पर हुआ है।” वियत्तमा बोली।
“हमें किसी दूसरे रास्ते पर विचार करने की आवश्यकता भी नहीं है वियत्तमायह सरासर विश्वासघात है हमारे साथ।” मुग्धा ने कहा
हाँ मुग्धा, विश्वासघात तो हुआ है हमारे साथ।” वियत्तमा मुग्धा का समर्थन करते हुए बोली। “इस संधि का प्रस्ताव मनुष्यों ने हमारे सामने रखा था और अब जब वो ही इसका पालन नहीं कर पा रहे तो हम क्यों...”
“क्षिराज क्या सभी मनुष्यों का प्रतिनिधि है जो आप संधि को भंग करने तक का सोचने लगे हो?” वियत्तमा की बात को काटते हुए सुरैया ने कहा।
“सुरैया, हम केवल क्षिराज को सबक सिखाना चाहते हैं जो यहाँ बहुत आवश्यक भी है, हमारे भले के लिए।”
 “आप लोग क्यों वर्षों की इस शांति को भंग करना चाहते हैंरूपसी पर प्राण घातक हमला हुआ है तो इसमें पूरी मनुष्य जाती को दोषी ठहराना कहाँ उचित हैहमारी संधि संयुक्त राष्ट्रों के साथ हुई ना कि सीधे क्षिराज के साथउसने तो संधि को तोड़ दिया परंतु अगर हम भी अगर ऐसा ही कुछ करते हैं तो इसका परिणाम होगा संधि का पूरी तरह से समाप्त होना। और अगर ऐसा हुआ तो यह ना तो यह हमारे हित में होगा और ना ही मनुष्यों के हित में।
तुम कुछ मत कहो सुरैयातुमने सदा से मनुष्यों का पक्ष लिया है।” मुग्धा उस पर भी बरस पड़ी थी क्या हो गया है तुम्हें सुरैयातुम्हारी तो अपनी बेटी है रूपसी। फिर भी तुम्हें उससे अधिक मनुष्यों की चिंता है। कैसी मां हो तुम?” मुग्धा ताना मारने के ढंग से बोली।”
मुग्धा।” सुरैया चिल्लाई। “रूपसी पर हमला करने वाले को मैं स्वयं अपने हाथों से चीर देना चाहती हूँ।” सुरैया भी गुस्से में होकर बोली। “परंतु मैं अपनी बेटी के कारण कोई ऐसा कदम भी कभी नहीं उठाना चाहूँगी जिससे हमारे अस्तित्व पर कोई संकट हो। आवश्यकता होने पर चुड़ैलों की भलाई के लिए मैं अपनी बेटी के ही नहीं, अपने प्राणों का भी बलिदान दे सकती हूँ।”
तो क्या अब इस भय से हम अपने आप को इन गुफाओं में सदा के लिए क़ैद कर लेंक्योंकि अब बाहर तो हमारे शिकारी घूम रहे हैं।” मुग्धा ने अंतिम शब्द अजरा की ओर देखकर कहे थे।
शांत हो जाओ तुम दोनों।” अजरा ने उँचे स्वर में कहा। “मुग्धा, हम अपनी बहनों की रक्षा करना भली प्रकार जानते हैं। अनजाने में यह हमसे भूल हुई कि हमने अपनी तीन बहनों को खो दिया परंतु अब हमें पता होने के बाद कोई हम में से किसी एक को भी छू के भी दिखाए, हम उसका अस्तित्व समाप्त कर देंगे।” अजरा मुग्धा से कहकर सुरैया की ओर मुड़ी। “यही बात हम तुमसे भी कहेंगे सुरैया, हमें भी अपनी चुड़ैल बहनों की चिंता है और जहाँ तक हो सके हम शांति बनाए रखने का प्रयास करेंगे परंतु हमें दुर्बल या लाचार समझने की भूल भी हम नहीं सहेंगे।”
माता अजरा, अंदर आने की आज्ञा चाहती हूँ।” वह पहरेदार चुड़ैल महल के अंदर पहुँच चुकी थी, कक्ष के द्वार पर खड़े हो उसने आज्ञा मांगी
सभी एक साथ उसकी ओर पलट कर देखने लगे क्योंकि द्वार प्रहरी का अजरा तक आने का एक ही कारण हो सकता हैकिसी के आने का संदेश पहुँचाने का
आ जाओ दिलसा।” अजरा ने उसे अंदर बुलाते हुए कहा
माता अजरा, महायोद्धा शौर्य आपसे मिलने की अनुमति चाहते हैं।” दिलसा बोली
ठीक हैउन्हें हमारे पास लेकर आओ।” आदेश मिलते ही वह वापस मुड़ गई और बाहर की ओर उड़ गई। “हमें आशा थी शौर्य के आने की परंतु इतनी जल्दी वह आ जाएगा यह नहीं सोचा था।”
हमारे मामले में उसे हस्तक्षेप करने की क्या आवश्यकता है।” मुग्धा ने आपत्ति जताई। “हमें अपने निर्णय लेने के लिए किसी बाहर वाले से सलाह करने की कोई आवश्यकता नहीं है।”
मुग्धा, अभी निर्णय लेने के लिए और भी लोग हैं यहाँ पर और मत भूलो कि यही वो मनुष्य है जिसके शिष्य ने रुपसी के प्राण बचाए हैं।” अजरा ने गरजते हुए कहा
इतना होने के बाद भी शांत बैठना कायरता कहलाएगा।” अजरा की बात सुन वह गुस्से में इतना कहकर कक्ष से बाहर निकल गई
आप सब भी अभी हमें अकेला छोड़ देंहम शौर्य को भी सुनना चाहेंगे उसके बाद हम अपना निर्णय बताएंगे।” अजरा ने सभी को बाहर जाने का इशारा करते हुए कहा
सभी बाहर निकल गये, वहाँ पर अब बस अजरा और सुरैया ही थे। “मां यह सब क्या हो रहा है अचानक? कुछ भी समझ नहीं आ रहा है, अंजान आशंकाओं से मन घबरा रहा है।” सुरैया उदास होकर बोली
चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है मेरी बच्चीमैं सब सोच समझ कर ही कुछ निर्णय करूँगी, भरोसा रखो मुझ पर।” अजरा ने उसे समझाने के लिए कहा
*
कुछ देर बाद दिलसा शौर्य को लेकर कक्ष तक पहुँच गई थी
क्या मैं अंदर आ सकता हूँ।” शौर्य जो कक्ष के दरवाजे पर खड़ा था आदर से बोला
आओ शौर्य, अंदर आ जाओ।” अजरा ने कहा। “सुरैया तुम हमें कुछ देर के लिए एकांत में छोड़ दो।” सुरैया ने आदेश का तुरंत पालन किया और कक्ष के बाहर जाने लगी
मुड़ने के साथ उसकी दृष्टि शौर्य से टकराई। शौर्य ने देखा उसकी आँखें भीगी हुई थीदूसरे ही क्षण सुरैया ने अपनी पलकें नीचे कर ली और शौर्य के बगल से होकर बाहर निकल गई
कहो शौर्य, किस उद्देश्य से आना हुआ।” अजरा ने जानते हुए भी अंजान बनकर पूछा
महारानी अजरा, बीते दिन जो कुछ भी हुआअच्छा नहीं हुआ और मुझे बहुत खेद है कि हम तपोवनियों के होते हुए यह सब हो गया।” शौर्य ने कहना प्रारम्भ किया। “परंतु फिर भी मैं आपसे प्रार्थना करना चाहता हूँ कि इस समय आप थोड़ा संयम रखें क्योंकि...
शौर्य, अब हम किसी भी प्रकार का वचन देने की स्थिति में नहीं हैं।” अजरा ने उसकी बात को बीच में काटते हुए कहा। “हमारी चुड़ैलें पहले ही बहुत क्रोधित हो चुकी हैं। तुम्हें पता हैरूपसी पर हमला होने से पहले हमारी तीन और चुड़ैलें भी लापता हो चुकी हैं?
आपने पहले हमें इसकी सूचना क्यों नहीं दीयह बात हमें पता होती तो शायद आज यह स्थिति ही ना आती।”
हम स्वयं अब तक अंजान थे कि उनके साथ क्या हुआ या वो कहाँ चली गई हैं? हमने उस समय उसे गंभीर नहीं लिया था परंतु रूपसी पर हुए हमले ने स्पष्ट कर दिया है कि उनके लापता होने में भी मनुष्यों का ही हाथ है। अगर हम अब भी चुप रहेंगे तो सब चुड़ैलों पर से अपना विश्वास खो देंगे।” यह कहकर वह शौर्य की ओर देखने लगी
“आपका अपनी चुड़ालों के प्रति उत्तरदायित्व है यह मैं समझ सकता हूँ परंतु क्या आमने सामने के युद्ध में आप क्षिराज पर विजय प्राप्त कर सकते हैंअगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो…” शौर्य थोड़ा रुके यह कहकर। “मुझे आप लोगों की शक्ति पर कोई संदेह नहीं है, आप इथार को बहुत हानि पहुँचा सकती हैं परंतु उसकी सेना की आगे आप लोग अधिक देर तक नहीं टिक सकते और मुझे नहीं लगता यह आप लोगों के हित में होगा। दूसरी बात अगर आप ने बिना संयुक्त राष्ट्रों के सामने अपना पक्ष रखेस्वयं ही इस प्रकार का निर्णय लिया तो इस स्थिति में बाकी के राष्ट्र आपका सहयोग नहीं कर सकते आपको स्वयं यह युद्ध लड़ना होगा, बिना किसी सहायता के।”
शौर्य, मनुष्यों का भय मुझे मत दिखाओ। हमने यह संधि किसी भय से नहीं की थीहम भी बस शांति चाहते थे अन्यथा हम आज भी वो ही चुड़ैलें हैं जिनसे भयभीत होकर इन्होंने किसी समय आप लोगों को इस धरती पर बुलाया था। और तुम उनसे ही हमें अपने जीवन के लिए भीख मांगने को कह रहे हो।”
भीख नहींआप लोग अधिकार से यह बात संयुक्त राष्ट्रों के सामने रख सकते हैं क्योंकि अब इस समस्या का समाधान करना उनका दायित्व बनता है। आप उनसे जवाब मांगिए कि अगर आपने कभी भी संधि की शर्तों का उलंघन नहीं किया है तो फिर संयुक्त राष्ट्रों के ही एक सदस्य ने आप लोगों को चोट पहुँचाने का प्रयास क्यों किया? आप इस बात को समझिए कि आप भले ही मनुष्यों से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं परंतु इथार की सेना के सामने आप लोग मुट्ठी भर से अधिक नहीं हैं। आपके अपने लोगों के साथ ना जाने कितने अन्य निर्दोष भी इस युद्ध की चपेट में आ जाएंगे।”
हम मुट्ठी भर चुड़ैलें भी उसको आतंक का वो रूप दिखा सकती हैं जो उसने कभी कल्पना भी नहीं होगी। अभी हमारा वास्तविक चेहरा दुनिया ने देखा ही कहाँ है? हमसे विश्वासघात का परिणाम तो सब को मालूम होना चाहिएतभी तो दूसरों को सीख मिलेगी। फिर कोई हम चुड़ैलों से विश्वासघात करने की नहीं सोचेगा।”
उसके बाद विश्वास ही कहाँ बचेगाघात की बात तो तब होगी ना। और फिर इसका मूल्य क्या चुकाना पड़ सकता है यह आप जानती हैं। फिर से वही घटनाचक्र प्रारम्भ हो जाएगा जो हम बहुत पीछे छोड़ आए हैं। क्षिराज को दंड अवश्य मिलेगा परंतु नियम से। और हाँ उसका अपराध जितना दिखाई दे रहा है यह उससे भी कहीं अधिक है...” अजरा के चेहरे पर प्रश्न उभर आए। “हाँ, उसका आपकी रूपसी को मारने की कोई मंशा नहीं थी बल्कि वह उसे जीवित पकड़ना चाहता था, किस उद्देश्य के लिएयह मुझे नहीं मालूम।” अजरा भी इस बात से गंभीर हो गई थी। “इसलिए अच्छा यही होगा कि आप अपने प्रतिशोध की आग में जल जाने के स्थान पर इस षड्यंत्र पर से आवरण हटाने में हमारी सहायता करें।”
परंतु यह बात तुम्हें कैसे पता है?”
रूपसी का एक हमलावर अब भी हमारी हिरासत में है, उसने यह सब उगल दिया है परंतु इससे अधिक उसे भी नहीं पता है। हो सकता है आपकी बाकी तीन चुड़ैलें भी क्षिराज के दुष्ट इरादों की भेंट चढ़ गई हों।” शौर्य कुछ सोचने लगे। “महारानी अजरा आपकी बाकी चुड़ैलें कब और किन परिस्थितियों में लापता हुईक्या मुझे बता सकती हैं आपलापता होने से पहले क्या किसी ने उन्हें देखा था?”
“दो के बारे में तो किसी को सूचना नहीं कि अचानक वो कहाँ चली गईपरंतु सुगंधा आश्चर्यजनक रूप से लापता हुई थीनगर के बीचों बीच से वह कहाँ चली गई किसी को नहीं पता।”
“नगर के बीच सेमतलबक्या आप विस्तार से कुछ बता सकती हैं?”
“निशिकन्ड़क गई थी वोहमारी आवश्यकता के कुछ समान लेनेउसके साथ और भी पाँच-छः चुड़ैलें थी। बाकी सब लौट आई परंतु वह आज तक वापस नहीं आई है। अगर विस्तार से जानना है तो मैं विभा को बुला देती हूँ, तुम उसी से जान लो क्योंकि उसी ने सुगंधा को अंतिम बार देखा था।” अजरा ने ताली बजा के इशारा किया तो एक सेविका अंदर आ गई
विभा को हमारे पास बुलाया जाए।”
जो आज्ञा माता अजरा” कहकर वह सेविका लौट गई
“महारानी, अभी के लिए मेरी आपसे विनती हैआप अभी अपनी चुड़ैलों को समझा दे कि कुछ समय के लिए वो सतर्क हो जाएं। हो सके तो जब तक सच सामने ना आ जाए कोई विधारा के बाहर ना जाए।”
अब बस यही बाकी रह गया था शौर्य।” अजरा शौर्य की बात सुन कर थोड़े देर के लिए सोच में पड़ गई
शौर्य, केवल तुम्हारे कहने पर हम रुक जा रहे हैंपरंतु हम अधिक समय नहीं देंगे। अगर संयुक्त राष्ट्रों की दृष्टि में विधारा के अधिकारों का कोई मोल है तो क्षिराज को उसके किए का दंड आतिशीघ्र मिलना चाहिए।” अजरा ने शौर्य को चेतावनी देते हुए कहा
ऐसा ही होगा आप विश्वास रखिए। मैं आप तक शीघ्र ही संदेश भेजता हूँसंयुक्त राष्ट्रों के बीच आपकी मौजूदगी आवश्यक होगी।”
ठीक है शौर्य, हम तुम पर भरोसा करते हैंहम आ जाएंगे।” अजरा ने उसे आश्वासन दिया
हम पर भरोसा किया है तो हम इसे टूटने नहीं देंगे।”
हम हृदय से प्रार्थना करते हैं कि हमारा भरोसा कायम रहे।”
धन्यवादआपने सदा की भाँति हमारी बात को सुना।” शौर्य यह कहकर अपने चारों ओर देखने लगे
समर्था अभी तक खिड़की से लटककर उनकी सारी बाते सुन चुकी थी। शौर्य ने संयोग से ही खिड़की की ओर देखा परंतु समर्था इससे घबरा गई और उसका पाँव फिसल गया क्योंकि वह एक चुड़ैल थी सो उसने अपने आप को तुरंत संभाल लिया परंतु अजरा ने खिड़की के बाहर हुई इस हरकत को भाँप लिया और वह तुरंत वहाँ पहुँची उसने बाहर झाँक कर देखा परंतु अब वहाँ कोई नहीं था। अजरा ने कुछ समय तक इधर उधर देखा फिर इसे एक वहम समझ के भुला दिया। वह मुड़ के वापस शौर्य के पास पहुँच गई और समर्था भी जो उपर गुंबद से चिपक कर छुप गई थीअजरा के पलटते ही भाग गई
क्या हुआ महारानी अजरा?” शौर्य ने पूछा
कुछ नहीं शौर्यसब ठीक है।” अजरा ने कहा
महारानी अजरा, रूपसी अब...” शौर्य को बीच में ही चुप हो जाना पड़ा
“माता अजरा, क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?” विभा ने अंदर आने की आज्ञा मांगी।
आ जाओ। शौर्य, ये विभा है जिसने सुगंधा को लापता होने से पहले देखा था।”
प्रणाम महायोद्धा।”
प्रणामविभा मुझे सब बताओ तुमने क्या देखा था?”
वह बहुत ही विचित्र तरीके लापता हुई थी महायोद्धा।”
“थोड़ा विस्तार से बताओगी विभा।”।
हुआ ऐसा था महायोद्धा कि हम अपनी वस्तु सामग्री लेकर वापस अपनी बग्घी के पास जा रहे थे। सुगंधा हम सबसे पीछे चल रही थी। वहाँ तक पहुँचने से कुछ पहले ही अचानक एक भिखारी सुगंधा के सामने आ गया। उससे उलझने के कारण वह हमसे कुछ कदम पीछे रह गई थी। मैंने देखा था उसेवह भिखारी उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहा था। मेरा ध्यान तब उस शोर से बँट गया जो हमारी बग्घी के पास से आ रहा थाकुछ लोग झगड़ रहे थे वहाँ। हम भी देखने के लिए वहाँ गये क्योंकि हमें लगा कि कहीं हमारी बग्घी तो उस झगड़े का कारण नहीं है। यह अंतराल अधिक से अधिक पचास कदम का ही रहा होगा और वो भी हम दौड़ कर गये थेबस इतनी ही देर में मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो सुगंधा वहाँ नहीं थी। और हाँ वह भिखारी भी वहाँ नहीं था। सुगंधा का एक बार माना जा सकता है कि वह इतने कम समय में आँखो से ओझल हो सकती है परंतु उस भिखारी का अदृश्य होना मैं आज तक नहीं समझ पाई। यह असंभव था।”
तुमने पूछा नहीं किसी से इस बारे में वहाँ?”
किस से पूछती महायोद्धा? वहाँ कोई नहीं था। संयोग से उस दिन वहाँ बहुत कम ही लोग थे और वो भी उस झगड़े के दर्शक बने हुए थे।”
इसके अलावा क्या कुछ और असामान्य सा दिखाई नहीं दिया तुम्हें?” उसने सर हिला के विवशता प्रकट की
वह भिखारीतुमने दुबारा वहाँ जाकर पता लगाने का प्रयास नहीं किया?”
किसी को मेरी बात पर भरोसा ही नहीं था जब तक कि रूपसी पर हमला नहीं हुआ था। और उस भिखारी का मैंने चेहरा नहीं देखा थाउसकी पीठ मेरी ओर थी।”
ठीक है विभाधन्यवाद इस जानकारी के लिए। “यह कहने के साथ शौर्य अजरा की ओर मुड़े।”
महायोद्धा, एक विनती है।” विभा फिर बोली तो शौर्य ने उसकी ओर देखा
अगर आप सच का पता लगाने में सफल होते हैं तो कृपया मुझे भी बताना कि उनके लापता होने का रहस्य क्या था?”
अजरा और शौर्य दोनों उसकी ओर देखने लगे
वो... मैं सो नहीं पाती हूँ महायोद्धा। जब तक इस बात का उत्तर मुझे नहीं मिलेगा मुझे नींद नहीं आएगी।”
 “हाँ ठीक है, अब तुम जाओ यहाँ से।” अजरा उसकी बात सुनकर बोली
शौर्य ने बाहर जाती विभा को धीरे से कहा। “विभा, तुम अब आराम से सो सकती होहम सच का पता लगा लेंगे।” विभा कक्ष से बाहर चली गई थी
शौर्य, ध्यान रखिएगा हमारे साथ छल नहीं होना चाहिए।” अजरा ने कहा
नहीं होगाहमारे रहते तो कभी नहीं।” कुछ रुक के शौर्य ने फिर पूछा। “महारानी अजरा, रूपसी अब कैसी है?”
चिंता की कोई बात नहीं हैवह ठीक है शौर्यघाव अधिक गहरा नहीं था। उसे अभी आराम करने के लिए कहा गया हैवह अपने कक्ष में सोई होगी। आप रुकिये मैं उसे यहाँ बुला देती हूँ आप स्वयं तसल्ली कर लीजिए।”
नहीं... नहीं इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।” शौर्य ने उसे रोकते हुए कहा” उसे आराम करने दीजिएमैं बस उसकी कुशलता के बारे में जानना चाहता था... मुझे अब चलना चाहिए। आज्ञा दीजिए।”
शौर्य, किस बात की शीघ्रता है? हमें भी कभी अपनी आवभगत का अवसर दिया करो। तुम आज भी सदा की भाँति वापस जाने के उतावलेपन में हो।” 
आप जानती हैं अभी स्थिति कुछ अधिक ही गंभीर हैमैं इसमें थोड़ी भी देरी नहीं करना चाहता।”
तुम बिना किसी गंभीर मसले के आते भी कहाँ हो।” 
हा… हा… हा… ऐसा नहीं है।” शौर्य ने हंस कर कहा था। “अगली बार आऊँगा तो अवश्य समय दूँगा।”
पिछली बार भी यही तो कहा था तुमने।” अजरा भी मुसकुरा के बोली। “ठीक है शौर्य, जैसी तुम्हारी इच्छा। मैं तुम्हे रोक कर तुम्हारे कार्य में बाधा नहीं डालूंगी।”
 शौर्य ने प्रणाम किया और वापस जाने के लिए मुड़ गये परंतु अजरा की अनुभवी आँखों ने उनके चेहरे को पढ़ लिया था
ठहरो शौर्य।” अजरा की आवाज पर शौर्य पीछे मुड़े। “तुम रुको यहाँ, हम किसी को भेजते हैं। तुम उसके साथ रूपसी के कक्ष तक चले जानातुम उसे देख भी लोगे और इससे उसके आराम में कोई व्यवधान भी नहीं पड़ेगा।” यह कहकर अजरा कक्ष से बाहर निकल गई
*
कुछ देर शौर्य के प्रतीक्षा करने के बाद एक छोटी बच्ची कक्ष में दाखिल होती है
प्रणाम।” वह आते ही बोली। “आप रूपसी को देखना चाहते हैं नामाता अजरा ने मुझे यहाँ भेजा हैआइए मेरे साथ मैं आपको वहाँ लेकर चलती हूँ।” वह बाहर निकल कर एक दिशा में चल दी तो शौर्य भी उसके पीछे चल दिए
क्षमा चाहता हूँ मैंने तुम्हें पहचाना नहींक्या नाम है तुम्हारा?”
मेरा नाम मिथ्या हैआप मुझे नहीं जानते परंतु मैं आपको जानती हूँ। आप महायोद्धा शौर्य हैं ना?”
हांपरंतु तुम मुझे कैसे जानती हो?”
आपको तो सब जानते हैंबड़ी माता सुरैया मुझे आप लोगों की कहानियाँ सुनाती है। आप दुष्ट लोगों को सबक सिखाते हो और अच्छे लोगों की सहायता करते हो।”
“मैं यह भी जानती हूँ की आपके शिष्य ने उस दुष्ट को पकड़ लिया जिसने हमारी बहन रूपसी को घायल किया हैमुझे यहाँ से बाहर जाने ही नहीं दिया जाता है अन्यथा उसको तो मैं…” इतना कहकर मिथ्या दाँत पीसने लगी और शौर्य उसकी बातों पर मंद-मंद मुसकुरा रहे थे
तुम गुस्सा मत करो मिथ्यातुम्हारा यह काम हम कर देंगे। उसे उसके किए का दंड अवश्य मिलेगा।”
हाँ और उसे हमारी ओर से भी एक सबक अवश्य देना...” मिथ्या बतियाते हुए कुछ ही समय में शौर्य को रूपसी के कक्ष तक ले आई थी
यह रूपसी का कक्ष है महायोद्धा।” मिथ्या ने इशारे से शौर्य को बताया और आगे बढ़कर उसने अंदर झाँक कर देखा। “यह तो अभी तक भी सोई हुई हैमैं इसे अभी जगाती हूँ।”
नहीं मिथ्या ठहरो।” शौर्य ने धीरे से कहा। “इसे आराम करने दो।”
शौर्य ने मिथ्या को रुकने के लिए इशारा किया और पर्दे को हटा के अंदर झाँका तो रूपसी बिल्कुल गहरी नींद में सो रही थी। वह धीरे से अंदर प्रवेश कर गयेशौर्य सावधानी से उसकी ओर बढ़े कि कदमों की आहट भी उसे सुनाई ना दे। वो रूपसी की बगल में जाकर बैठ गये और रूपसी को निहारने लगेशौर्य का हाथ अपने आप ही उसके माथे तक पहुँच गया। शायद वह उसके माथे को सहलाना चाहते थे परंतु अचानक उन्होंने अपना हाथ पीछे खींच लिया। शौर्य उसकी नींद में व्यवधान नहीं डालना चाहते थे। शौर्य ने उसके घाव को देखा जिस पर पट्टी लगी हुई थी। वह कुछ देर इसी प्रकार शांत से हो वहाँ बैठे रहे और रूपसी को देखते रहे। शौर्य के मन की पीड़ा उनकी आँखों में दिखाई दे रही थी। थोड़ी देर के बाद वह उठे और वापस मुड़ने लगे परंतु शौर्य के कदम बाहर जाने के लिए उठ ही नहीं पा रहे थे, शायद कुछ बाकी रह गया था वहाँ। उन्होंने फिर से अपना हाथ आगे बढ़ाया और बहुत ही कोमलता से रूपसी के माथे को स्पर्श करते हुए उसके बालो को सहलाने लगे। रूपसी नींद में ही थी परंतु उसके चेहरे पर एक बहुत ही हल्की सी मुस्कुराहट उभर आई थी शायद वह कोई स्वप्न देख रही थी। शौर्य का मन वहाँ से जाने का बिल्कुल नहीं कर रहा था परंतु उनका अब जाना भी आवश्यक था उन्होंने रूपसी को फिर एक दृष्टि भर देखा और अपना चेहरा घुमा लिया। इसके बाद शौर्य ने पीछे मुड़ के नहीं देखा। अपने चेहरे पर आए भावों को बदलकर वह तुरंत कक्ष से बाहर आ गये जहाँ मिथ्या उनकी प्रतीक्षा कर रही थी
धन्यवाद मिथ्यातुम मुझे अब बाहर का रास्ता बता दो।”
आइए मैं आपको लेकर चलती हूँ।” मिथ्या ने उन्हें महल के बाहर तक छोड़ दिया
*
शौर्य के मन में ना जाने क्या चल रहा था? विधारा से निकलने के बाद वह बहुत ही गंभीर से दिखाई दे रहे थे, बस सूर्यनगरी की ओर बढ़े जा रहे थे। अपने विचारों में खोए शौर्य को विधारा से कुछ दूर आगे आने के बाद रुक जाना पड़ा था। वह अश्व से नीचे उतर गये और अपने चारों और कुछ ढूँडने लगे। इस समय हल्की हल्की सी हवा चल रही थी वहाँ, पेड़ो से खिले हुए फूलों की पंखुड़ियाँ हवा में इधर उधर तैर रही थी। शौर्य ने आँखें बंद करके हवा को महसूस किया, यह कुछ जाना पहचाना अहसास था। शौर्य ने आँखें खोलकर इधर-उधर देखा परंतु उन्हें अब भी कोई दिखाई नहीं दे रहा था
मैं जानता हूँ तुम यहीं मेरे आस पास हो।” शौर्य के शब्दों में व्याकुलता के साथ प्रार्थना भी थी। “मेरे सामने आओमैं तुम्हें देखना चाहता हूँ।” शौर्य अभी भी यहाँ-वहाँ किसी को ढूँढने का प्रयास कर रहे थे कि तभी उन्हें पेड़ो के पीछे से एक साया बाहर आते हुए दिखाई दिया।”
शौर्य ने धीरे से अपने कदम उस दिशा में बढ़ाएवह साया पेड़ो से निकलकर चुपचाप खड़ा हो गयाउसने सर झुका रखा था। हल्की धुंध होने के कारण उसे पहचानना कठिन था परंतु शौर्य के लिए नहीं। शौर्य उसके बिल्कुल समीप पहुँच गये थे। उन्होंने उस साये के चेहरे को अपने हाथ से उपर किया तो उसकी आँखों में आँसू थे परंतु चेहरे पर मुस्कुराहट भी।
सुरैया।” शौर्य ने तड़पकर कहा और उसके आँसुओं को अपने हाथों से पोंछने लगे। “मुझे क्षमा कर दो, इन आँसुओं का कारण शायद मैं ही... ।” शौर्य इतना ही कह पाए क्योंकि सुरैया ने अपने हाथ को शौर्य के होंठों पर रख दिया था
“तुम्हें किसी भी बात के लिए दुखी होने की आवश्यकता नहीं हैं।” सुरैया कहने लगी। “तुम्हारा कोई दोष नहीं हैजो हुआ उस पर किसी का कोई बस नहीं था।” सुरैया ने अपना हाथ हटाते हुए कहा। “कबसे रोके रखा था इन आँसुओं को, तुमको देखा तो बस रुके ही नहीं।” इतना कहकर वह शौर्य से लिपट गई और शौर्य ने भी उसे अपनी बांहों में समेट लिया। “बहुत भारी हो रखा था मेरा मनअब मुझे यहाँ रो लेने दो, यह हल्का हो जाएगा।”
सब ठीक हो जाएगा। मुझ पर विश्वास है ना?” शौर्य ने उसे दिलासा देते हुए कहा
केवल तुम पर ही तो है।” सुरैया ने चैन की साँस लेते हुए कहा, फिर कुछ समय के लिए दोनों इसी स्थिति में एक दूसरे से लिपटे रहे
थोड़ी देर बाद सुरैया ने अपने आँसू पोंछकर कहा। “उस दुष्ट ने तुम्हारी निशानी को मुझसे छीनने का प्रयास किया है शौर्य, उसे जीवित रहने का अब कोई अधिकार नहीं है।”
“सुरैया, निश्चिंत रहो, रूपसी के घावों का और तुम्हारे आँसुओं का हिसाब क्षिराज को देना ही होगा।” शौर्य ने उसके दोनों कंधों पर हाथ रखकर कहा। “परंतु उससे पहले मुझे पता लगाना है उसके दुष्ट इरादों के बारे में। अपनी कौन सी दुष्ट चाल के लिए वह रूपसी का उपयोग करना चाहता था।"
 क्या!” सुरैया ने चौंक कर पूछा
हाँ सुरैयारूपसी पर हमला उस के प्राण लेने के लिए नहीं हुआ था। क्षिराज रूपसी को जीवित पकड़ना चाहता था।”
वह हमारी बच्ची का उपयोग करना चाहता थाकिसलिए?” “सुरैया पहले से भी अधिक क्रोधित हो गई थी।
इसका जवाब अभी मेरे पास नहीं है परंतु जल्दी ही मैं इस रहस्य पर से आवरण हटा दूंगा।”
“तो क्या इससे पहले जो घटनाएँ हुई है चुड़ैलों के साथ, उनमें भी इसी दुष्ट का हाथ था?”
“यह भी संभव है और क्षिराज अकेला भी नहीं है। कोई और भी इस षड्यन्त्र का हिस्सा है। लेकिन अब उनमे से कोई भी बच नहीं सकेगा।"
“फिर तो शीघ्र ही पता लगाने का प्रयास करो शौर्य।”
“हां मैं करूँगा।” शौर्य ने यह कहकर सुरैया की आँखों में देखा। “तुम्हें मालूम है आज मुझे हमारी बेटी को बहुत समीप से देखने का अवसर मिला, वह बिल्कुल तुम्हारी जैसी दिखती है। मैं जब उसके पास गया तो वो गहरी नींद में सो रही थी और फिर मैं उसके निकट बैठ गया, उठने का मन ही नहीं हो रहा था मेरा।"
सुरैया मंद मंद मुस्कुराने लगी। शौर्य कहते जा रहे थे। "और हां तुम्हें पता है आज मैंने उसे छूआ भी, अपने हाथों से, मैं बयान नहीं कर सकता मैंने कैसा महसूस किया था उस समय। एक बार मन किया उसे उठा कर कह दूं कि, “रूपसी उठो, मेरे सिने से लग जाओ, मैं तुम्हारा पिता हूँ” और उसे अपने सीने से लगा लूँ।” शौर्य कल्पना करके ही मुसकुरा दिए।
“इतनी तड़प है अपनी बेटी को छूने की तो हमें क्यों नहीं रख लेते अपने पास?” सुरैया ने तड़पकर कहा। “ये कैसा बलिदान है अपनी खुशियों का जिसमें अपनो को अपना कहने का भी अधिकार नहीं है?”
सुरैया, तुम जानती हो मैं ऐसा नहीं कर सकता। मेरे लिए यही पर्याप्त है कि वह अपनी मां के पास सुरक्षित है और बहुत खुश है। इससे अधिक एक पिता को और क्या चाहिए?”
नहीं शौर्य, तुम भी जानते हो यह पर्याप्त नहीं है। अपने आप को झूठा दिलासा देने का एक बहाना मात्र है ये। तुम नहीं तो मुझे करने दोमैं रूपसी को जाकर बता दूंगी उसका और तुम्हारा क्या संबंध है। तुम अपनी खुशियों का बलिदान दो परंतु रूपसी को तो उसकी खुशियाँ मिलने का अधिकार है। उसे तुम्हारी बेटी होने का गौरव हासिल करने दो।” सुरैया ने कहा
उसके बादजब उसे पता चलेगा कि वह मेरी बेटी होते हुए मुझे सब के सामने अपना पिता नहीं कह सकती तबएक क्षण की खुशी के बाद वह सदा इस पीड़ा में जलेगी। यह ना तुम्हें स्वीकार होगा और ना मुझे।”
तो फिर उसे कब बताओगेयह विवशता तो सदा हमारे साथ रहेगी। हमारे हिस्से की खुशियाँ तो बलिदान की भेंट चढ़ गई अब क्या रूपसी को भी…” सुरैया ने शौर्य की आँखों में देखकर पूछा। “अगर यह बात उसे किसी और से पता चलेगी तो उसे कितना दुख होगा।”
सुरैया, सब ठीक हो जाएगा समय आएगा तो उसे भी सच का पता चल जाएगा और जिस दिन वह यह जानेगी विश्वास करो उसे थोड़ा भी बुरा नहीं लगेगा, वह हमारी लाचारी को समझेगी क्योंकि वह हमारी बेटी है।”
कहीं ना कहीं यह पीड़ा शौर्य के हृदय के किसी कोने में भी थी कि वह अपनी बेटी को अपना तक नहीं कह सकते थे। आँखें जब इस पीड़ा को छिपाने में सफल नहीं हुई तो शौर्य ने आकाश की ओर चेहरा करके कुछ सोचने का अभिनय किया ताकि सुरैया को इसका आभास ना हो जाए। परंतु सुरैया को यह जानने के लिए उनकी आँखों को देखने की आवश्यकता नहीं थी।
मेरी ओर देखो शौर्य।” उसने दोनों हाथों से शौर्य के चेहरे को पकड़कर अपनी ओर घुमाया
“मुझे क्षमा कर दो शौर्य, मैं स्वार्थी हो गई थी। मैंने तुम्हारा मन दुखाया यह जानते हुए भी कि तुम्हारा कहीं कोई दोष नहीं है।” सुरैया की आँखें फिर से भीग गई थी। “तुम्हारी बात सच हो मैं यही प्रार्थना करती हूँ।”
ऐसा मत कहो सुरैया, मुझे तुम्हारी बातों का थोड़ा भी बुरा नहीं लगता है। मैं तुमसे प्रेम करता हूँ सुरैया।” शौर्य ने कहा
मैं भी।” इतना कहकर वह फिर से शौर्य से लिपट गई

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