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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

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अध्याय 17 - नियम पाठ - भाग 5

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक

नियम पाठ - भाग 5

मुंह तोड़ दूंगी तुम्हारा कुछ भी गंदा बोला मेरे बारे में तो।” अंबिका उसकी बात पर भड़क गई थी
अक्षया, चुप हो जाओ तुमऔर अंबिका तुम भी गुस्सा शांत करो।” रूपसी ने दोनों को एक दूसरे से दूर किया। “जो हो गया सो हो गयाअब लड़ने से क्या हासिल होगा भला।”
हूँ...” अक्षया ने मुंह बनाया। “पुरुषों की लतीपता नहीं अब तक कितने पुरुष भोग चुकी है।” अक्षया बुदबुदा रही थी
क्या कहा तूने? फिर से कहना तो एक बार...” अंबिका अक्षया की ओर बढ़ते हुए बोली।
कुछ नहीं कहा उसने अंबिका।” रूपसी ने अंबिका को रोक के अक्षया को घूरा। “अब एकदम चुप हो जाओ अक्षया।”
हाँ ठीक हैतुम बताओ, तुम हमें छोड़कर कहाँ चली गई थीमैं वहाँ होती तो उन दुष्ट मनुष्यों को अच्छा सबक सीखा देती।” अक्षया ने दाँत पीस कर कहा
रूपसी क्या हुआ था वहाँ? हमें भी बताओ ना।” वाशवी ने पूछा तो रूपसी ने अब भी गुस्से में खड़ी अंबिका की ओर देखा
हाँ बताओ रूपसी क्या हुआ था वहाँ?” अंबिका ने सहज होने का अभिनय करते हुए कहा
तो सुनोमैं अंबिका को ढूँढते हुए बहुत आगे चली गई थी कि अचानक मुझे उन सिपाहियों ने घेर लिया। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले ही उन्होंने मुझ पर हमला कर दिया। मैं तुरंत वहाँ से भागी तो झाड़ियों में से कुछ और सिपाही निकल आएसब का निशाना मैं ही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह अचानक क्या हो रहा है। मैं उनसे उलझाना नहीं चाहती थी इसलिए बस मैंने वहाँ से निकल जाना चाहा कि तभी दुष्टों का एक तीर मेरी बाजू में आ लगा।” रूपसी ने खेद प्रकट करते हुए बोला था। “ना जाने क्या था उस तीर में, मेरा मस्तिष्क घूम रहा था और मैं अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी। बस किसी प्रकार से मैंने अपने आप को गिरने से बचाया।” सभी ध्यान से उस कहानी सुन रही थी
फिर क्या हुआ रूपसी।” ईशानी ने पूछा
मुझ पर मूर्छा सी छा रही थी परंतु तब भी मैं खड़े होने का प्रयास कर रही थी क्योंकि वो सिपाही मेरे पीछे किसी भी समय वहाँ आने वाले थे। तभी एक मनुष्य वहाँ आ गया, मुझे लगा वह उन्हीं में से एक है सो मैंने अपना छुरा निकाल के उसकी ओर कर दिया और उसे दूर रहने की चेतावनी दी। परंतु वह तो जाने को तैयार ही नहीं था। थोड़ी देर में वो सिपाही आ गये तब मुझे मालूम हुआ कि वह मेरा शत्रु नहीं बल्कि रक्षक बनकर आया था।” रूपसी मुसकुरा दी। “उसने उनको अच्छा सबक सिखाया।”
फिर उसके बाद?” ईशानी ने उत्सुकता से पूछा
मैं मूर्छित हो गई और जब आँख खुली तो मेरे घाव पर दवा लगी हुई थी।”
उसके बाद क्या हुआ?” वाशवी बोली
उसके बाद मैं यहाँ आ गई।”
नहींबताओ ना, इतनी जल्दी सब थोड़े ना हो गया था। क्या तुमने या उसने कुछ भी एक दूसरे से नहीं पूछा?” वाशवी ने निराश होकर पूछा

पूछा नाउसने मेरा नाम पूछा और अपना नाम बताया। अब अधिक गहराई में जाने की आवश्यकता नहीं है, हम चुड़ैलें हैं, मनुष्यों से मित्रता हमारी प्रकृति नहीं हैसमझी।”