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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

युगान्धर-भूमि ग्रहण की दस्तक महारथी विराट 1/5 “ प्रणाम महारथी विराट ।”  वेग ने कक्ष में प्रवेश करते के साथ ही कहा तो विर...

अध्याय 11 - कनकपुरा की भारगी

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक



 कनकपुरा की भारगी

कनकपुरा नगरशौर्य के साथ सेनापति विश्वजीत और कुछ पचास चौकस सिपाही छुपते हुए घेरा तैयार कर रहे थे। शौर्य सभी को तैनाती के लिए उन्हे उनका स्थान समझा रहे थे।
“स्मरण रहे हमारा पहला प्रयास उनको जीवित पकड़ने के लिए होगा परंतु अगर तुम में से किसी के भी प्राण संकट में हों तो उनके प्राण लेकर भी अपने प्राणो की रक्षा करना, समझ गये?” सब ने सहमति में सर हिला दिया
बहुत अच्छेअब तुम लोग अपना स्थान लो और मेरे संकेत की प्रतीक्षा करो। एक दूसरे से तालमेल बना के उनके समीप पहुँचना है।” विश्वजीत के साथ किसी को अपनी ओर आते हुए देख शौर्य ने कहा। “ठहरो एक क्षण।”
महायोद्धा, यही है शांतनु जिसने हमें सूचना भेजी थी।” विश्वजीत ने उसका परिचय दिया।
शांतनु, कबसे हैं ये चुड़ैलें यहाँ पर?”
श्रीमान, सुबह से ही हैं।” शांतनु ने जवाब दिया
परंतु यहाँ सब कुछ इतना सामान्य क्यों हैक्या किसी को पता नहीं है कि यहाँ चुड़ैलें हैं?”
नहीं श्रीमान, हमने किसी को भयभीत करना उचित नहीं समझा।”
फिर तुम्हें कैसे पता कि यहाँ चुड़ैलें हैं।”
हमने देखा थासुबह बग्घी में बैठ कर कोई आठ-दस चुड़ैलें यहाँ आई हैं।”
तुमने देखा चुड़ैलें बग्घी में बैठकर आई है?”
मेरा तात्पर्य है कि कुछ महिलाएँ आई हैं परंतु वो चुड़ैलें हैं।”
वो चुड़ैलें ही हैं, तुम इस विश्वास से कैसे कह सकते हो?”
श्रीमान, पहली बात तो यह कि उस बुढ़िया पर हमें पहले से ही संदेह था। इसके यहाँ कई बार महिलाओं को आते जाते हुए भी देखा है फिर आज भी कोई दस महिलाएँ हैं और सदा की भाँति एक भी पुरुष नहीं।”
तो क्या यही कारण है कि तुम उन्हें चुड़ैल समझ रहे हो?” शौर्य ने अचंभे से उससे पूछा
नहींयही कारण नहीं है परंतु…” वह दूसरे सैनिकों की ओर देखने लगा। “श्रीमान, सब को यही लगता है
वो बुढ़िया कौन है?”
भारगी नाम है उसकाकई वर्षों से इसी नगर में है। बहुत अच्छी वैध है लेकिन लोगों को इसके बारे में कुछ अधिक नहीं पता है
उस पर संदेह होने का कारण?”
यही कि नगर के बाहर से अंजान औरतों का इसके यहाँ ये जो आना जाना है… तो… ये...” उसके पास कोई संतोषजनक उत्तर नहीं था
तो…? वह लोगों की सेवा करती है और तुम उसे चुड़ैल बता रहे हो।” शौर्य को यह थोड़ा विचित्र लग रहा था और गुस्सा भी आ रहा था। वह सेनापति विश्वजीत एवं बाकी सिपाहियों की ओर मुड़ते हुए बोला
पता नहीं हम यहाँ पर कहीं मूर्ख ना सिद्ध हो जाएं। सिपाहियों, वो चुड़ैलें ही हैं यह अभी पक्का नहीं हैसब अपनी सूझ-बुझ से काम लें। बिना जाँचे कोई हमला नहीं करेगा।”
*
छुपते हुए सब उस घर की ओर बढ़ने लगे। घेरा अब छोटा होने लगा था, वह घर चारों ओर से घिर गया था। कुछ देर में उस घर की खिड़कियोंझरोखों और दरवाजों पर सैनिकों ने अपना स्थान ले लिया थी। अभी तक भीतर शायद किसी को पता नहीं चला था कि बाहर उनके लिए कितना मजबूत घेरा बना दिया गया है। कुछ सैनिक छुपते हुए उस घर की छत पर भी जा पहुँचे थे। मुख्य दरवाजे के एक ओर शौर्य स्वयं मौजूद था एवं दूसरी ओर सेनापति उसके साथ खड़ा था। दोनों ने आँखों में कुछ इशारे किए और शौर्य ने दरवाजे पर एक हल्की सी दस्तक दी
ठक... ठक…” कोई जवाब नहीं आने पर शौर्य ने फिर एक बार दरवाजा खटखटाया। “ठक… ठक…” परंतु अब भी कोई जवाब नहीं था
तैयार हो जाओ मैं दरवाजा तोड़ रहा हूँ।” शौर्य ने दरवाजे के सामने आते हुए कहा
दरवाजे के टूटने के बाद कोई दूसरे रास्ते से बाहर भागने का प्रयास कर सकता है इसके लिए सेनापति ने सैनिकों को सांकेतिक भाषा में सावधान होने का इशारा किया और उसके तुरंत बाद शौर्य की एक ठोकर से दरवाजे की कमजोर कुण्डी उखड़ गई। दरवाजा खुल गया था परंतु अंदर एक बूढ़ी महिला जो शायद भारगी थीके अलावा कोई नहीं था। शौर्य के साथ सेनापति भी अचंभित था यह देखकर
कौन हो तुम लोग और यहाँ क्या कर रहे हो?”
उस महिला ने आपत्ति जताई परंतु शौर्य के पीछे आए सैनिक बिना क्षण गवाएँधड़धड़ाते हुए घर में घुस गये
“रुक जाओ, क्या चाहिए तुम लोगों को?” वह महिला लगातार विरोध कर रही थी।
कुछ ही पलों में सिपाहियों ने उस छोटे घर का हर कोना छान लिया था और फिर सब ने शौर्य को कुछ ना होने का संकेत दे दिया। शौर्य ने शांतनु को पलट कर देखा जो उनके पीछे-पीछे वहाँ आ गया था। वह स्वयं हैरान था क्योंकि सुबह से वो और उसके साथी वहाँ दृष्टि गड़ाए बैठे थे। वह कोई जवाब नहीं दे पा रहा था परंतु शौर्य के लिए अब उस महिला को इस बात का जवाब देना कठिन होने वाला था
“मेरे घर में इस प्रकार घुसने का साहस कैसे किया तुमने?” तभी वह वृद्ध महिला शौर्य पर चिल्लाने लगी। “समझ क्या रखा है तुम लोगों ने, सिपाही हो तो क्या किसी के भी घर में जैसे चाहो घुसने का अधिकार मिल गया तुम लोगों को?”
क्षमा कीजिए, हमें शायद कुछ भ्रम हो गया था।” शौर्य ने बहुत विनम्रता से कहा। “परंतु आपने दरवाजा क्यों नहीं खोला? मैंने दो बार दस्तक दी थी।”
दो बार दी थी तो तीसरी बार भी दे सकते थेमेरा घर है और मेरी इच्छा है कि मैं कितनी दस्तक के बाद दरवाजा खोलूं।” महिला अभी भी गुस्से से तमतमा रही थी
“माता जी, आप क्रोधित ना हों, हमें कुछ गलत सूचना मिल गई थी।”
“हमें खेद है माता जी,” सेनापति ने शौर्य को सहयोग देना चाहा। “मैं अभी आपका दरवाजा ठीक करवा देता हूँ।”
मुझे तुम्हारे इस उपकार की आवश्यकता नहीं हैतुम अभी और इसी समय मेरे घर से निकल जाओ।”
हम जा रहे हैंआप शांत हो जाइए।” शौर्य ने अपने कदम पीछे करते हुए कहा। “चलो यहाँ से।”
मैं तुम लोगों की शिकायत करूँगी, तुम्हें कोई अधिकार नहीं है किसी आम नागरिक को भयभीत करने का, उसे परेशान करने का।”
“माता जी...” सेनापति ने कुछ कहना चाहा परंतु शौर्य ने उसका हाथ पकड़ लिया
“एक अकेली वृद्ध स्त्री के घर में घुसने का यह तरीका होता है भला?”
शौर्य धीरे से कहने लगा। “सेनापति यह हमारी कोई बात नहीं सुनेगी, अभी यहाँ से बाहर चलना उचित है। कुछ समय में यह अपने आप शांत हो जाएगी।”
सिपाहियों। बाहर निकलो तुरंत।”
तुम लोगों को पछताना पड़ेगामैं छोड़ूँगी नहीं तुम्हें आसानी से।”
सेनापति के आदेश पर सब फुर्ती से बाहर की ओर चल दिएउनके साथ सेनापति और दो कदम पीछे शौर्य भी बाहर जाने के लिए मुड़ गये थे। कि तभी एक पानी की बूँद जैसा कुछ शौर्य की आँख के पास गिराशौर्य के कदम वहीं रुक गये। उसने अपना गाल छू कर देखा और इसी के साथ उसकी गर्दन उपर उठ गई। खपरैलों से ढके उस घर की छत को भीतर से लकड़ियों के फट्टों की सहायता से ढका गया था। उनके बीच किसी दरार से वह बूँद गिरी थीसंदेह होना तय था। छत के नीचे उस ढके हुए हिस्से में कई सारी महिलाएँ छुपी हुई थी, ठंडी ऋतु होने के बावजूद उस महिला के माथे से टपकी उस बूँद ने उनका भेद खोल दिया था। भय सभी महिलाओं के चेहरों पर भी दिखाई देने लगा था परंतु उनमें से इस एक के चेहरे पर भय से अधिक थकावट और पीड़ा दिखाई दे रही थीशायद वह बीमार थी
शौर्य ने प्रश्न भरी दृष्टि से वृद्ध महिला को देखाउसके चेहरे का रंग अब बदल चुका था और उसकी आँखों में गुस्से का स्थान भय ने ले लिया थी । अपनी म्यान में रखी तलवार को शौर्य ने फिर से निकाल कर हाथ में थाम लिया था। सेनापति जो दरवाजे पर पहुँच चुका थापीछे पलट कर देख रहा था
उपर जो भी है उसे नीचे आने को कहो।” शौर्य का स्वर कड़क था।
अब महिला के लिए उनकी मौजूदगी को छिपाना संभव नहीं था। “भागो।” वह बहुत उँचे स्वर में चिल्लाई
सिपाहियों सावधान।” सेनापति एक क्षण की देर किए बिना बाहर भागते हुए चिल्लाया था
सब अपने-अपने स्थान पर पूरी सतर्कता से उनके बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थेघर से बाहर निकलने की हर छोटी से छोटी संभावना धनुधरों के निशाने पर थी। कहीं से भी निकलकर वो भागें, सिपाही तैयार थे। तभी अचानक खपरैलों की वह छत एक हिस्से फट पड़ीउस हिस्से से उखड़ी खपरैल इधर उधर उछल गई थी। छत पर वहाँ तैनात एक सिपाही अपने आप को संभाल ना सका और चीखते हुए नीचे आ गिरा। एक-एक करके वहाँ से चुड़ैलें बाहर निकल के भागने लगी, इस रास्ते से निकलने की अपेक्षा किसी को नहीं थी परंतु फिर भी सिपाही तैयार थे। एक साथ कई सारे तीर निकल कर चुड़ैलों के उस झुंड की ओर लपके। बहुत गति और फुर्ती से निकल भागने के बावजूद भी कई चुड़ैलें तीरों का शिकार बन चुकी थी। एक तीर उस बीमार चुड़ैल के कूल्हे में लगा था और दूसरे तीर ने उसके एक पंख को चोटिल कर दिया थाइसके बावजूद वह वहाँ से भागने में सफल हो गई थी। एक शायद मर चुकी थी और उनमें से दो चुड़ैलें बुरी तरह घायल होकर नीचे आ गिरी थी। बाकी कई अन्य चुड़ैलें भी घायल हुई थी परंतु वहाँ से जीवित बच निकली थी। इस हो हल्ले से अब तक आम लोगों को भी चुड़ैलों के बारे में सूचना मिल चुकी थी।
घर के भीतर शौर्य महिला से सवाल कर रहा था। “उन चुड़ैलों को यहाँ आश्रय क्यों दिया तुमने?”
तुम लोग निर्दयी होतुम लोगों में थोड़ी भी दया नहीं है।”
दया! इन चुड़ैलों की दया का प्रमाण भी मैं देख चुका हूँ। इन तक तो हम पहुँच ही जाएंगे परंतु इनकी सहायता करके तुमने अपने लिए संकट को जन्म दे दिया है। जवाब दो, तुमने उन्हें क्यों बचाया?”
मैं केवल अपना काम कर रही हूँ यहाँ, वो बीमार है जिसका उपचार और हर हाल में सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है।”
इस तर्क से तुम अपने आप को बचा नहीं सकती। तुम जो यहाँ वर्षों से लोगों के विश्वास के साथ खेल रही हो उसका दंड तो तुम्हें भुगतना ही होगा।” शौर्य के इशारे पर सिपाही उसे पकड़ के घर से बाहर ले आए थे।
हाँमुझे दंड मिलना चाहिए। इसके लिए कि मैंने बिना किसी स्वार्थ के सदा यहाँ लोगों की सेवा की हैमरते हुए लोगों के प्राण बचाए हैं मैने यही मेरा अपराध हैहै ना?”
तुमने क्या किया है और क्या नहीं? मुझे जानने की इच्छा नहीं है परंतु तुमने चुड़ैलों को हमसे छिपाने का अपराध किया हैउन्हें भागने में सहायता की है। उसका दंड तो तुम्हें मिलेगा।”
पीछा करो इनका ये अधिक दूर तक उड़ नहीं सकेंगी।” आदेश देने के साथ ही सेनापति अश्व पर बैठ गया था महायोद्धा,” उसने शौर्य को पुकारा। “हमें जाना चाहिए।”
सिपाहियों, बाँध दो इसे।” शौर्य यह कहकर अपने अश्व की ओर बढ़ा ही था।
“महायोद्धा!" सेनापति के इस सम्बोधन से भारगी चौंक गई थी। "क्या तुम एक तपोवनी हो?"
"शौर्य की आँखो में उत्तर पढ़कर भारगी भावुक होकर पूछने लगी। “तपोवनी होकर भी यह पाप कर रहे होतुम लोग तो सदा न्याय का साथ देते हो फिर आज यह अन्याय क्यों कर रहे हो?”
कैसा अन्यायइन चुड़ैलों ने यहाँ लगभग सभी देशों में तबाही मचा रखी हैइनको रोकने के लिए ही हमें यह सब करना पड़ रहा है।”
“तुम्हें झूठी सूचना मिली है योद्धा, बहुत बड़ी भूल करने जा रहे हो हो तुम। अपने सिपाहियों को रोक लो और उनको जाने दो अन्यथा यह बहुत बड़ा पाप होगा।” भारगी रोने लगी थी। “मेरे काम में बाधा डाल कर तुम पहले ही एक पाप कर चुके हो।”
“हम जानते हैं हमें क्या करना है।” शौर्य ने सिपाहियों की ओर देखा। “सिपाहियों पकड़ लो इसे।” आदेश का तुरंत पालन हुआ।
“हे तपोवनी महायोद्धा... यह पाप मत होने दोवह… वह चुड़ैल…”
*
कई यादें बहुत दुख पहुँचाती हैं जिन्हें टटोलने से भी पीड़ा होती है। शौर्य अपनी यादों से बाहर निकल आए थे। रात का अंतिम पहर गुजर गया था और विधारा का नगर भी अब अधिक दूर नहीं था। विधारा प्रदेशजिसका पूरा क्षेत्र चुड़ैलों के हिस्से में आता है। बहुत दूर-दूर तक फैले विधारा प्रदेश के उत्तर में उदीष्ठादक्षिण में कम्पीलिया और पूर्व में ईथार राष्ट्र की सीमा जुड़ी हुई है। बची हुई एक दिशा पश्चिम से समुद्र जुड़ा हुआ है। इसके बीच का सारा क्षेत्र चुड़ैलों का है। यह मीलों तक फैला विधारा का जंगल मनुष्यों और चुड़ैलों को अलग रखता है। कई वर्षों पहले जहाँ लगभग सभी राज्यों में चुड़ैलों आतंक चरम पर था और जब तब मनुष्य, चुड़ैलों का शिकार बन जाते थे तो कई चुडैलें भी मनुष्यों के हाथों मारी गई थी। तब तपोवनियों के बीच में आने से दोनों के बीच एक संधि हुई थी जिसकी शर्तों के अनुसार बिना आवश्यकता के दोनों में से कोई भी एक दूसरे के सामने आने से बचेंगे। चुडैलें ध्यान रखेंगी कि वह मनुष्य की मौजूदगी में कभी भी अपने चुड़ैल रूप में ना आए और इसके बदले चुड़ैलों को संयुक्त राष्ट्रों के किसी भी राज्य में निर्भय होकर आने की स्वतंत्रता होगी परंतु बिना अपनी पहचान प्रकट किए। सभी राष्ट्र के सिपाहियों को निर्देश होंगे कि वे चुड़ैलों की असली पहचान को छिपाए रखने में चुड़ैलों का सहयोग करेंगे परंतु चुड़ैलों को भी किसी नगर में प्रवेश से पहले वहाँ के नगरपाल या वहाँ की सुरक्षा व्यवस्था को सूचित करना अनिवार्य होगा। इसके साथ यह पूरा विधारा का प्रदेश चुड़ैलों को दे दिया गया। एक प्रकार से मनुष्यों ने उनके अस्तित्व को अपने बीच स्वीकार कर लिया था। इसके बाद से चुडैलें हर प्रकार से विधारा पर निर्भर हो गई थी। 

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