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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

युगान्धर-भूमि ग्रहण की दस्तक महारथी विराट 1/5 “ प्रणाम महारथी विराट ।”  वेग ने कक्ष में प्रवेश करते के साथ ही कहा तो विर...

अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 3

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक

महारथी विराट - भाग 3


कारण अगर यह संतुलन बिगड़ गया तो यह फिर किसी के लिए भी अच्छा नहीं होगा। मैं नहीं चाहता कि वो समय दुबारा कभी आए जब यह दोनों जातियाँ एक दूसरे के रक्त की प्यासी थी।”
परंतु…” दुष्यंत ने फिर कुछ कहना चाहा
दुष्यंत, अपने आप पर और हम पर विश्वास रखो। हम रक्षकों को कई बातों को ध्यान में रखकर अपने निर्णय लेने होते हैं। अगर रूपसी ने अपराध किया है तो उसे कोई राहत का प्रसन नही उठता। लेकिन उससे पहले उसका असली चेहरा उसके अपने लोगों के सामने लाना होगा। उसके दोषी होने के बावजूद अगर कोई उसका पक्ष लेता है या उसका साथ देता है तो उसकी परवाह करने के लिए हम बाध्य नहीं हैं।” 
दुष्यंत को विराट ने थोड़ा संतुष्ट किया फिर जब किसी की ओर से कोई दूसरा प्रश्न नहीं दिखा तो विराट ने कहा। “अभी अगर आप लोग चाहें तो कुछ देर के लिए विश्राम कर लें। आप लोगों ने बहुत लंबा रास्ता तय किया हैथक गये होंगे आप लोग।”
धन्यवादपरंतु हम बिल्कुल ठीक हैं महारथी।” वेग ने कहा
विश्राम नहीं करना चाहते तो फिर ठीक है जल्दी से तैयार हो जाइए।” विराट ने तुरंत कहा तो दोनों थोड़ा चौंके। “हा हा हा... आप लोगों को सूर्यनगरी में आए कितना समय हो चुका है और अब तक आपने इस खुशी के प्रयोजन को देखा भी नहीं है जिसके कारण हर दिशा चकाचौंध है। क्या किसी को संदेह नहीं होगा?” दोनों ने मुसकुरा के हाँ में सर हिलाया
हाँ महारथी, आप सही कह रहे हैं। मैं अब आज्ञा चाहूँगामुझे पिताश्री से शीघ्र मिलना चाहिए।” दुष्यंत ने कहा
हाँ दुष्यंत, तुम्हें अब महाराज के पास जाना चाहिए। और तुम वेगतुम अपने बाकी के साथियों के साथ दरबार में पहुँचो। मैं तुम्हें अब वहीं पर मिलूँगा।” विराट ने दोनों को समझा दिया
*
अतिथि निवास में मेघ और विधुत प्रताप को अभी तक चिढ़ा रहे थे।
“ये अच्छा हुआ कि केवल हम थे और किसी दूसरे के सामने इसने यह नहीं कहा अन्यथा… हा हा हा… महाराज बाहुबल ने विवाह कब किया?” मेघ ने कहा तो विधुत भी हंस दिया था।
“प्रताप, तुम्हे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।” विधुत ने कहा।
“कह दिया ना भाई, ध्यान कहीं ओर था निकल गया मुँह से।” प्रताप ने सहजता से उत्तर दिया था।
“कहाँ था तुम्हारा ध्यान जो…”
"इसका ध्यान? मैं जानता हूँ कहाँ था इसका ध्यान और कहाँ इसकी दृष्टि ठहरी हुई थी।” मेघ बोला
“क… कहाँ? वो स्वागत द्वार को मैं सीधा करने में सहायता कर रहा था मेघ।” प्रताप ने अंजान बनते हुए कहा।
मेघ उसकी बात पर हँसने लगा था।
“कहाँ था फिर इसका ध्यान? बताओ भी मेघ क्या देखा तुमने?” विधुत ने तुरंत पास आकर शरारत से पूछा।
क्या बताएगाकुछ होगा तो बताएगा ना।” प्रताप बोला

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