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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

युगान्धर-भूमि ग्रहण की दस्तक महारथी विराट 1/5 “ प्रणाम महारथी विराट ।”  वेग ने कक्ष में प्रवेश करते के साथ ही कहा तो विर...

अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 4

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक

महारथी विराट - भाग 4




जब हम सब लोग आगे चल पड़े थे और ये महाशय पीछे रुक गये थेसाज सज्जा करने वालों के पास तब...” मेघ रुक कर प्रताप को देखने लगा
तब...?” विधुत ने पूछा
तब तुमने ध्यान अगर दिया हो तो एक कोई शाही रात निकला था वहाँ से। उस रथ को देखने के बाद से ही अनाप शनाप गा रहा है। महाशय की आँखों की रौनक कम होने का ही नाम नहीं ले रही है।"
 “क्या था उस रथ में ऐसा?” विधुत ने पूछा
“अब तुम भी विधुत इस प्रकार का प्रश्न पूछ कर..., इसकी आँखें बता तो रही है कि रथ में क्या था।”
“ओ… हो अब समझा, कोई... कोई लड़की थी?”
हाँ भाई, अब आगे मुझसे नहीं इससे पूछो।
“हमसे क्या छुपाना प्रताप, कौन थी, कैसी थी हमें नहीं बताओगे?” विधुत ने भी प्रताप को छेड़ने के लिए कहा
कुछ भी ऐसा नहीं था विधुतये मेघ कुछ भी मुंह में आया बक रहा हैराई का पहाड़ बना रहा है बस।” प्रताप ने कहा
 “अच्छा, अच्छा मान लियापरंतु कुछ भी ऐसा जो नहीं था वो थोड़ा सा ही बता दो मेरे मित्र। तुम्हारी मुस्कुराहट हमें सब बता रही है।” विधुत ने भी पीछा पकड़ लिया था
मुझे इसकी व्यर्थ बात पर हँसी आ रही है और बस कुछ नहीं।” प्रताप ने बचकर निकलना चाहा। “चलो अब शीघ्र तैयार हो जाओ, हमें दरबार में पहुँचना होगा।
प्रताप, तुम जानते हो हम तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाले। अब लड़कियों की भाँति नखरे दिखाना बंद करो और सच-सच बता दो।” विधुत ने उसके कंधे पर हाथ रख कर अपने ओर घुमा के कहा
कुछ भी तो…” उसने फिर वही कहना चाहा परंतु पीछे मुड़ते ही मेघ और विधुत के चेहरों को देख कर वह समझ गया कि वो नहीं मानने वाले अब। “कुछ नहीं विधुत, बस एक लड़की थी वहाँ पर।”
आगे बताओ।” विधुत ने अब अपने चेहरे का रंग बदलते हुए उतावलेपन से कहा
“और एक लड़का जिसका नाम प्रताप है।” मेघ बीच में कूद के बोला
वो देख रही थी मुझे इसलिए मैंने देखा।” वह मेघ की ओर पलटकर बोला
हाँ, हाँ… वैसे भी इतनी सुंदर तो नहीं थी कि प्रताप को मुग्ध कर सके, उपर से मोटी भी लग रही थी।” मेघ ने मुंह बना कर कहा और विधुत के पास बैठकर फल खाने लगा
अच्छी नहीं थी क्या?” विधुत ने धीरे से मेघ से पूछा तो मेघ ने सेब का एक टुकड़ा चबाते हुए ही मुँह के इशारे से अरुचि दिखाई।
“पहली बात तो यह की जो तुम सोच रहे हो बात वह है नहीं और दूसरी बात वह लड़की बग्घी के भीतर थी सो उसके मोटा या पतला दिखने का यहाँ प्रश्न ही नहीं है।”
“प्रताप, वह थी मोटी। चेहरे से झलक रहा था।” मेघ ने कहा तो विधुत भी उसकी बात से संतुष्ट दिखाई दे रहा था।
“नहीं, नहीं विधुत… ये तो दूर खड़ा था बहुत, मैंने पास से देखा था मोटी तो बिल्कुल नहीं दिख रही थी।” प्रताप को मेघ का उस अंजान लड़की की बुराई करना अच्छा नहीं लग रहा था। “जो जानते नहीं हो वह बोलना आवश्यक भी तो नहीं।” प्रताप ने उसके हाथ में से कटा हुआ सेब का टुकड़ा खींच के कहा
“तो तुम बता दो, मुझे जैसी लगी मैंने तो वैसा बताया।” मेघ ने भी अनमने ढंग से उत्तर दिया उसकी बात का। “ढपोलशंख, हमारे मुंह से उसकी प्रसंशा सुनना अच्छा लगेगा या स्वयं कुछ विवरण दोगे उसके गुणों का। मुझे कोई आपत्ति नहीं है परंतु इससे तुम्हे ही ईर्ष्या होगी।” मेघ ने इस बार अकड़ कर कहा।
प्रताप ने विधुत की आँखों में देखा, विधुत अब भी जवाब की प्रतीक्षा में उसकी ओर देखे जा रहा था और साथ में मेघ भी। प्रताप का जवाब जानने व्याकुलता बढ़ती जा रही थी। फिर जब प्रताप ने अपनी पलकों को झपककर हाँ में इशारा किया तो मेघ और विधुत चिल्ला के उस पर कूद पड़े
दुष्ट, हम से अब तक छुपा के रखा। ठहरो, अभी तुम्हे सबक सिखाते हैं।” और यह बोल के तीनों गुत्थमगुत्था हो गये



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