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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

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अध्याय 17 - नियम पाठ - भाग 4

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक

नियम पाठ - भाग 4


जवाब दो मुझे, कहाँ लापता हो गई थी तुम?” अंबिका को चुप देखकर रूपसी ने दुबारा पूछा। “माता अजरा के सामने मैंने नहीं बताया कि मैं तुम्हें ढूँढने के फेरे में उनकी दृष्टि में आ गई थी। परंतु तुम्हें मुझे यह बताना होगा।”
इस अक्षया के कारण मैं पहले ही बहुत कुछ सुन चुकी हूँ माता अजरा सेअब तुम और गुस्सा मत करो मुझ पर। मैं बस ऐसे ही उन सिपाहियों की गतिविधियाँ देखने लगी थी। मुझे नहीं पता था कि वो तुम्हें ही नुकसान पहुँचाने आए हैंअन्यथा उनको तो मैं वहीं पर... अच्छा छोड़ो तुम्हारा घाव अब कैसा है?”
वो ठीक हैपहली बार नियम तोड़ा और सब को मालूम भी हो गया।” रूपसी ने मुंह बनाया
परंतु तुम्हें कैसा लगा यह बताओ? घाव लेकर भी तुम्हारे मुख पर प्रसन्नता दिखाई प्रतीत हो रही हो।” अंबिका की बात पर रूपसी मुसकुरा दी
तुमने सही कहा थायहाँ से बाहर जाने का आनंद ही कुछ अलग है,” रूपसी इतरा के बोली
क्या बात है थोड़ा खुल के कहो, मैंने सुना तुम्हारे प्राण भी किसी मनुष्य ने ही बचाए थे। कौन था और कैसा था वो?”
हाँउसका नाम…” रूपसी अंबिका को बता ही रही थी कि बाकी तीनों भीजो उनके बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रही थी, उनके पास पहुँच गई
रूपसी…” अक्षया चिल्लाते हुए आई और रूपसी से लिपट गई। तुम्हारा घाव कैसा है अबदर्द तो नहीं हो रहा है।” अक्षया ने उसके कंधे को छू के पूछा
आउच।” रूपसी के मुंह से निकाला। “पगली, क्या ऐसे पूछते हैं?”
दुखा क्यागलती हो गई क्षमा कर दो मुझे।” अक्षया झट से पीछे होकर बोली
हा हा हा…” रूपसी हंस दी। “कुछ नहीं हुआ है मुझेयह अब ठीक हो चुका है। “उसने अक्षया को आगे बढ़कर फिर से गले से लगा लिया
“दुष्ट…” अक्षया ने इतना ही कहा
अंबिका जो अब तक उसे घूर रही थीउसने उसका हाथ पकड़ कर उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया। “क्यों बताया तूने माता अजरा को?”
तो और क्या करती मैंछिपाने का कोई रास्ता थोड़े बचा था।”
माता अजरा के सामने तूने मुझे फँसायातूने अपना क्यों नहीं बताया कि तू कब-कब और कितनी बार यहाँ से बाहर गई है?” वह उस पर बरस पड़ी थी। “अवसर सही नहीं था अन्यथा तेरा भेद भी मैं खोल सकती थी।”
किसने देखा है मुझे बाहर जातेमुझे भी क्या स्वयं के जैसा समझा है तूनेवैसे बता दूंतुम्हारे जैसे घटिया शौक नहीं मेरे अंबिका।” अक्षया भी तैश में आ गई थी
ओहोतुम दोनों लड़ाई मत करो नहीं तो मुझे लगेगा कि सारी मेरी गलती है।” रूपसी ने बीच-बचाव करना चाहा परंतु
क्या… क्या कहा तुमनेकौन से घटिया शौक हैं मेरे?”
जाओ, मेरा मुंह मत खुलवाओ।”

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