Featured post

अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

युगान्धर-भूमि ग्रहण की दस्तक महारथी विराट 1/5 “ प्रणाम महारथी विराट ।”  वेग ने कक्ष में प्रवेश करते के साथ ही कहा तो विर...

अध्याय 14 - शुभ आगमन

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक


शुभ आगमन

वेग और उसके सभी साथी सूर्यनगरी पहुँच चुके थे। नगर में घुसते ही उन्होंने देखा रास्तों और गलियों को फूलों से सजाया जा रहा था, चारों ओर उल्लास की लहर सी दिखाई दे रही थी सभी के मन में जानने की उत्सुकता थी कि सूर्यनगरी में अचानक कौन से पर्व का आयोजन हो रहा है जिसके बारे में तपोवनी अभी तक अंजान है
दुष्यंत ने तारकेन्दु को द्वार पर खड़े सैनिकों के सुपुर्द करते हुए कहाइसे ले जाओ और बंदीगृह में डाल दो।” तो प्रहरियों ने उसे तुरंत अपनी हिरासत में ले लिया
प्रताप और विधुत ने दुष्यंत की ओर देखा परंतु वह स्वयं आश्चर्य चकित था यह देखकर। वो लोग थोड़ा और आगे राज महल की ओर बढ़े कुछ दूरी पर पहुँचने पर राज महल दिखाई देने लगा था परंतु वह इससे भी अधिक आश्चर्यचकित कर देने वाला था। राजमहल को एक दुल्हन की भाँति सजा दिया गया थादुष्यंत की उत्सुकता प्रबल होती जा रही थी क्योंकि वह नहीं समझ पा रहा था कि ऐसा कौन सा उत्सव या शुभ घड़ी है जिसका आयोजन करने से पहले उसे या उसके साथियों को बुलाने की आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई। दुष्यंत को सूर्यनगरी में सभी राजकुमार के रूप में पहचानते थे सो अपने राजकुमार को देखकर सभी रास्ते से उसके सम्मान में हट जा रहे थे। दुष्यंत का मन हुआ कि वो किसी से पुछे परंतु वह यह भी सब के सामने जताना नहीं चाहता था कि नगर में होने वाले इस उल्लास भरे समारोह के बारे में उसे कुछ नहीं मालूम
परेशान लग रहे हो दुष्यंतक्या बात है?” उसको अपने ही सोच में खोए देखकर विधुत ने कहा
हाँ... कुछ नहीं।” अचानक उसकी सोच टूटी, उसने अपने आप को संभाला फिर बोला। “कुछ भी तो नहीं बस रास्ते की थकावट है।”
हा... हा... हा। यह परिहास अच्छा था।” प्रताप ने हँसते हुए कहा
“परिहास! नहीं तो। बस मैं तो...” दुष्यंत बचने का प्रयास कर रहा था
सही कह रहा है प्रतापथकावट को थकावट हो सकती है परंतु दुष्यंत को थका दे वो थकावट आज तक पैदा ही नहीं हुई है। फिर ऐसे में तो यह बात एक परिहास सी ही लगी।” विधुत बोला
रास्ता तो दिखा नहीं रहे हो, उसकी दुविधा को सुलझाने के स्थान पर तुम उसकी टाँगे खींचे जा रहे हो...” इस बार वेग बोला। “अरे मित्र होकुछ रास्ता तो दिखाओ। पता लगाओ कि यहाँ किस खुशी को मनाने की तैयारियाँ हो रही हैं। महल वालों को भी तो दिखाओ कि हमें बताएंगे नहीं तो क्या हमें पता नहीं चलेगाअब महल जाएंगे तो इस खुशी का रहस्य जानकार ही जाएंगे।”
मैं पूछता हूँ इनमें से किसी से।” मेघ ने कहा
“अरे बुद्धिमान, अगर पूछना ही होता तो यहाँ तक क्या बिना पूछे आते?” प्रताप की बात पर सभी थोड़ा हंस दिए। “दुष्यंत कम था जो अब तुम भी  गये परिहास करने को।”
तो अब क्या आकाशवाणी होने वाली है जो बिना पूछे सब को मालूम हो जाएगा।” मेघ ने झूठा नाराज़ होते हुए कहा
कुछ मालूम करने के लिए सदा पूछना आवश्यक नहीं होता मेरे मित्र। देखो अभी मैं तुम्हें यह दिखता हूँ।” प्रताप यह कह कर आगे बढ़ गया जहाँ कुछ लोग स्वागत द्वार बना रहे थे। स्वागत द्वार का ढाँचा लगभग तैयार था, वो लोग रस्सियों के सहारे अब उसे खड़ा करने जा रहे थे।
“अरे भाई, कोई कसर नहीं रहनी चाहिए सजावट में। इस प्रकार से सजा दो कि हर ओर से केवल आनंद की अनुभूति हो।” प्रताप ने वहीं काम करते हुए एक व्यक्ति से कहा जो उन सब को आता देख कर सम्मान में अपना काम छोड़ कर खड़ा हो गया था
“जी सरकार, बिलकुल ऐसा ही होगा।” वह बोला
हाँ... अन्यथा अतिथियों को कैसे पता चलेगा कि आप लोग कितने प्रसन्न हैं?” प्रताप उसे फँसाने का प्रयास करने लगा। “मैं सही कह रहा हूँ ना?” प्रताप की बात पर सभी हाँ में सर हिला रहे थे
सब को पता चलना तो चाहिए कि सूर्यनगरी में…” वह चुप हो गया इस आशा से कि कोई कुछ बोलेगा परंतु कोई कुछ नहीं बोला
अरे सब को पता चलना चाहिए ना कि सूर्यनगरी में… अरे बोलो भाई, क्या पता चलना चाहिए...?” युक्ति काम ना आते देख प्रताप थोड़ा झेंप सा रहा था
हाँ, हाँ... यही कि हम लोग कितने प्रसन्न हैं...” एक दूसरा बोला
और...?” प्रताप ने आगे पूछना चाहा
हम बहुत अधिक प्रसन्न हैं सरकार।” इस बार एक तीसरा भी बोला तो प्रताप ने अपना सर पकड़ लिया
अरे भाई, सब को पता चलना चाहिए कि आप लोग प्रसन्न हैंक्या आप के प्रसन्न होने का कारण सब को मालूम नहीं होना चाहिए?” सभी हाँ में सर हिलाने लगे परंतु जवाब जैसा प्रताप ने सोचा था नहीं मिला
तो सब को बताओ और अपनी इस प्रसन्नता में सभी को शामिल करो।” प्रताप ने एक और प्रयास किया, उसकी हालत पर सभी को हँसी आ रही थी परंतु सबने अपनी हँसी रोक के रखी हुई थी
सब को पता है सरकार ।” फिर से पहला वाला व्यक्ति बोला
सब को पता है?” प्रताप ने बाकी साथियों की ओर पलटते हुए उस व्यक्ति से पूछा। वह अपनी आँखों को आश्चर्य से तरेर रहा था जैसे स्वयं पर उपहास कर रहा हो कि जो बात सब को पता है वह बस उन्हें नहीं पता
हाँ सरकारऐसा शुभ समाचार कोई छुपे थोड़े रहता है। अंतत: इतने वर्षों की प्रतीक्षा के बाद यह शुभ घड़ी आई है।” उनमें से एक बहुत खुशी प्रकट करते हुए बोल रहा था
कितने वर्षों के बाद आई है दुष्यंत?” प्रताप ने ठीक समय पर दुष्यंत को सामने कर दिया
वो... हाँ हाँ … याद आया कुछ इतने वर्षों के बाद… यहशुभ घड़ी…” दुष्यंत के लिए बहुत कठिन सवाल था क्योंकि उसे यह तक नहीं पता था कि प्रश्न भला क्या है
खुशी में कहाँ याद रहता है? तुम भी कहाँ कैसे सवाल पूछते हो प्रताप। सही कहा ना मैंने।” वेग ने उन सजावट करने वालों की ओर देखकर कहा
हाँ सरकार, एकदम सही कह रहे हैं राजकुमार को तो दोगुनी खुशी होगी, इनको बहन मिली और महल की वर्षों की कामना पूरी हुई।”
बहन...?” प्रताप ने धीरे से दुष्यंत के कान में पूछा
अचानक से कोई समझ नहीं पाया परंतु जब दुष्यंत को उस व्यक्ति की दूसरी बात का ध्यान आया “वर्षों की कामना।” उसका भी मन हुआ कि मित्रों में खुशी प्रकट करे परंतु कर ना सका
चलो अब चलते हैं।” दुष्यंत ने यह कहा और आगे बढ़ गया
बिल्कुल सही कहा, खुशी में कहाँ कुछ याद रहता है, लोग तो ईश्वर को भी भूल जाते हैं।” प्रताप ने कहा। “वैसे कितने वर्षों के बाद आई है यह शुभ घड़ी?”
“एक सौ पाँच वर्षों के बाद।” उसने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा तो प्रताप ने आँखे फैला कर आश्चर्य प्रकट किया।
छ: पीढ़ियाँ बीत चुकी हैं महल में किसी कन्या को जन्मेआज वर्षों की कामना पूरी हुई है।” वह कह ही रहा था कि एक रथ वहाँ आ रुका।
“पूरा रास्ता रोक के रखा है आप लोगों ने, हटाओ इसे रास्ते से।” सारथी ने सजावट करने वालों से कहा था।
“अभी हटाते हैं सरकार।”
यह कहकर सभी रस्सी को खींचने लगे, स्वागत द्वार का ढाँचा उपर उठने लगा था। अश्व रुकावट देखकर स्वयं ही रुके थे और अब जब रुकावट हटी तो अश्व आगे बढ़ने लगे। सारथि ने लगाम को खींचकर उन्हे रोक तो लिया था किंतु रथ आधे खड़े द्वार के नीचे आ पहुँचा था। इसी समय द्वार से बँधी एक रस्सी टूट गई। द्वार का संतुलन बिगड़ गया था अब वह एक रस्सी के सहारे हवा में था।
"अरे संभाल के, क्या कर रहे हो?” सारथी घबराकर चिल्लाया क्योंकि इस समय रथ तो नहीं परंतु अश्व झूलते हुए द्वार की सीमारेखा में थे।
“हट जाओ सभी।”
चोट लगने के डर से कुछ लोग यहाँ-वहाँ दौड़े कि तभी रस्सी टूट गई और वह ढाँचा नीचे गिरने लगा। घबराहट में सारथि के भी हाथ पाँव फूल गये थे। परंतु समय रहते उस गिरते हुए ढाँचे के नीचे प्रताप आकर खड़ा हो गया था और उसे अपने हाथों में थाम लिया। प्रताप के अद्भुत प्रदर्शन को देख सभी भोचक्के से खड़े उसे देख रहे थे, सारथी भी।
“मैं क्या अब ऐसे ही खड़ा रहूँगा? देखो मत, निकलो यहाँ से जल्दी...अन्यथा...” यह कहते हुए प्रताप ने बग्घी की ओर देखा तो उसके शब्द वहीं रुक गये। उस लड़की का चेहरा देखकर जो शोरगुल सुनकर रथ में से बाहर झाँकने लगी थी। वह भी आश्चर्य से प्रताप को ही देख रही थी।
सारथी ने बिना देर किए धन्यवाद कहते हुए रथ को वहाँ से निकाल लिया। प्रताप अब भी पलट कर उस जाते हुए रथ को देख रहा था तो वहीं वह लड़की भी मुड़-मुड़ कर उसे ही देख रही थी।
“धन्यवाद आपका, आपने हमारा सारा परिश्रम बर्बाद होने से बचा लिया।” एक व्यक्ति ने कहा।
“हाँ ठीक है, अब इसे संभालो और इस बार ध्यान से खड़ा करना।” प्रताप की दृष्टि अब भी रथ का पीछा कर रही थी। प्रताप भी बाकी सभी के पीछे चला गया जो कुछ दूरी पर पहुँच गये थे।
“दुष्यंत, क्या कह रहे थे वो लोग कुछ समझ नहीं आया?” विधुत ने पूछा।
हाँ मेरे चाचा यानी छोटे सरकार कुंवर विक्रम के यहाँ बेटी जन्मी है। कोई लगभग सौ साल के बाद इस महल में किसी कन्या ने जन्म लिया है।”
हा हा हा… और तुम व्यर्थ ही जले जा रहे थे, अब क्या वो जन्म लेने से एक दिन पहले सूचित करने आये कि पहले दुष्यंत और उसके मित्रों को बुला लिया जाएकल मैं पैदा होने वाली हूँ।” मेघ सब समझ के हंस रहा था
और हम यहाँ रंग में भंग करने चले आएहा हा हा...” वेग अपनी स्थिति सोचकर हंस पड़ा था। उसकी बात कड़वी थी परंतु उमसे सच भी था जो मेघविधुत और दुष्यंत भी समझ गये थे और इसके बाद किसी के पास कोई उत्तर नहीं था
रुकोरुकोकहाँ छोड़ के भागे जा रहे हो।” प्रताप पीछे से चिल्लाता हुआ उन तक पहुँचा। “दुष्यंत, तुमने बताया नहीं महाराज ने दूसरा विवाह कब कर लिया?” उसकी बात पर सभी एक बार चकरा गये, दुष्यंत ने उसको बड़े विचित्र ढंग से गुस्सा होते हुए घूरा।
मैं तो केवल तुम्हारी बहन पैदा होने की खुशी में बधाई देना चाहता था... बस...” उसका वाक्य रुकते-रुकते रुक गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था प्रताप को कि वो वहाँ क्या गलत बोल रहा है जिसके कारण सभी की दृष्टि उसकी ओर कुछ इस प्रकार से उठी हुई हैं
प्रताप, दुष्यंत के चाचा यानी कुंवर विक्रम के यहाँ बेटी ने जन्म लिया है और वह दुष्यंत की क्या लगती है?” विधुत ने दाँत पिसते हुए कहा
 “ब ब… बहनमैंने भी यही सोचा कि महाराज इस उम्र में विवाह तो नहीं कर सकते…” प्रताप को लगा कि वो शायद अभी भी कुछ गलत कह रहा है क्योंकि सब की दृष्टि फिर से उसी प्रकार से उठ गई थी। तब… तब तो फिर अब उत्सव होना चाहिए, क्यों दुष्यंत?”
“उत्सव!” विधुत ने कुछ ताना सा मारते हुए कहा
हाँ उत्सव, क्यों नहीं होना चाहिए?” प्रताप ने पूछा
ओ बाबा वानरदास, तुम अपनी बुरी सी सूरत के साथ कोई शुभ समाचार लेकर नहीं आए हो यहाँ। भूलो मतहम यहाँ क्यों आए हैं?” विधुत की बात अब प्रताप को समझ आई थी
वेग, हम बाहर रुकते हैं तुम महारथी विराट को सब बता के आ जाना।” प्रताप ने कुछ देर सोचकर कहना प्रारम्भ किया। “सभी का इस प्रकार मुंह उठा के अंदर घुसना अच्छा नहीं दिखेगा और वो भी इतनी छोटी सी बात के लिए। हाँ, अगर चाहो तो दुष्यंत को भी साथ ले जाओदो लोगों का जाना कोई बुरा नहीं।”
यह कोई छोटी बात नहीं है प्रताप... कई लोगों की हत्याएँ हो चुकी हैं और हत्यारे का पता भी नहीं है।” वेग ने घुरकर कहा। “हम लोग एक उद्देश्य के साथ आए हैं उसे पूरा करना हमारा कर्तव्य है। हम सब साथ जाएंगे और योद्धा विराट से मिलेंगे।”
नहीं वेगप्रताप सही कह रहा है, हम सभी का जाना उचित नहीं रहेगा। अभी अंदर का माहौल बहुत खुशी का है, सभी का एक साथ जाना संदेह पैदा करेगा सब के बीच। जब इस मसले को हमें ही सुलझाना है तो बाकी लोगों को चिंतित करके क्या हासिल होगा? मैं और तुम चलते हैं और अवसर देखकर महारथी विराट और पिता श्री को सब बता देंगे।” दुष्यंत की बात वेग के साथ बाकी सभी को भी सही लगी
सही कहा दुष्यंत ने, मेरा मतलब भी तो यही था अकारण सभी को चिंतित करना उचित नहीं होगा।” प्रताप ने कहा
ठीक है, तुम लोग बाहर ही रुकना, पहले हम दोनों पहले अंदर जाएंगे।” वेग ने भी इस पर सहमति दिखाकर कहा
*
अब तक सारी घटनाएँ क्षिराज को भी पता चल चुकी थीआमलिका में वह भुजंग पर बरस रहा था
तुमने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा भुजंगतपोवनियों को बस एक अवसर चाहिए था और वह उनको तुम्हारे कारण मिल गया है।” क्षिराज के स्वर में झुंझलाहट के साथ क्रोध भी था। “तुम्हारा काम तो अधूरा का अधूरा ही रहा परंतु मेरे लिए तुमने खाई खोद दी है। अब नवराष्ट्रों के सामने मैं क्या जवाब दूंगा?”
“उसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी क्षिराज।” भुजंग ने कुछ कहना चाहा
“आवश्यकता पड़ेगी नहीं, पड़ चुकी है। अब किसी भी समय मेरे पास उनका बुलावा आने वाला हैमुझे जाना भी होगा और जवाब भी देना होगा। मुझे सभी देशों के सामने स्पष्टीकरण देना होगा। क्या कहूँगा मैं वहाँ?”
“तुम्हें कुछ कहने की आवश्यकता नहीं होगी मुझपर भरोसा रखो।” भुजंग ने फिर कुछ कहना चाहा परंतु
अब तक वही तो किया थामुझे क्या मालूम था कि तुम मेरे लिए इतना बड़ा संकट खड़ा कर दोगे। तपोवनियों को संदेह हो चुका है और अब उनसे इस सच को छुपा के रखना असंभव है। आज नहीं तो कल वो जान जाएंगे कि हमारा उद्देश्य क्या था और उसके बाद…”
ओह... तो यह डर जो तुम्हारे चेहरे पर दिखाई दे रहा हैइसका असली कारण तपोवनी हैं।” क्षिराज के डर को ताड़ कर भुजंग ने कहा। “तुम तपोवनियों से इतना डरते क्यों हो? तुम इथार के राजा होइस प्रकार डरना तुम्हें शोभा नहीं देता। वो भी इतनी शक्ति और सामर्थ्य के होते हुएक्या बिगाड़ सकते हैं वो तुम्हारा?”
नहींमैं नहीं डरता तपोवनियों से परंतु यहाँ पर स्थिति जब अपने विरुद्ध हो तो डरना आवश्यक हो जाता है। मत भूलो कि भीषण की तुलना में मेरी क्षमता कुछ भी नहीं हैउसका हश्र तुम्हें याद दिलाऊँगा तो तुम्हें दुख होगा। जानबूझकर संकट को गले लगाना मूर्खता कहलाती है।”
परंतु इस प्रकार घबराने से क्या संकट कम हो जाएगाउनके सच जानने से पहले ही हम अपना काम कर चुके होंगे। एक बार मेरे स्वामी मुक्त हो जाएं उसके बाद तुम्हारा या मेरा कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता है।”
अब भी तुम्हें भीषण के स्वतंत्र होने की आशा हैवह चुड़ैल तुम्हारे हाथ से निकल चुकी है जिसके सहारे तुम भीषण को बाहर निकालने के स्वप्न देख रहे थे और मेरे सैनिकों को फँसा दिया तुमने उन तपोवनियों के चंगुल में।
क्षिराज, उस चुड़ैल के हमारे हाथ से निकलने में या तुम्हारे सैनिकों के फँसने में गलती मेरी नहीं थीतुम्हारे सैनिकों की लापरवाही के कारण यह सब संकट आया है।”
भुजंगमत भूलो उनकी कमान मैंने तुम्हारे हाथ में सौंपी थी। उनका कहाँ और कैसे उपयोग करना था यह तुम्हारा काम था। मेरे सैनिकों में कमी बता के तुम मेरे क्रोध को और मत बढाओ। और तुम्हारे लोगों ने कौन सा काम पूरा कर दियाकम से कम तारकेन्दु को सूर्यनगरी जाने से रोक सके होते तो भी मैं कुछ जवाब सोच लेतापरंतु …”
अब जो हो गया है उसमें दोष निकालने से कुछ भी प्राप्त नहीं होगामैं कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकाल लूंगा।”
अब तुम और कुछ मत करोबस तुम कहीं अदृश्य हो जाओ। अगर किसी को थोड़ा भी संदेह हो गया कि मैं तुमसे मिला हूँ तो उनको हमारा उद्देश्य एक क्षण में समझ आ जाएगामेरे लिए अब और कठिनाइयों को जन्म ना दो।”
क्षिराज, अभी इतना भी बुरा नहीं हुआ हैतुम बहुत अधिक घबरा रहे हो। तुम निश्चिंत होकर वहाँ जाओ, मैं सब संभाल लूंगा। हमारे पास अभी बहुत समय है।”
सब समाप्त हो चुका हैमुझे तुम्हारा प्रस्ताव मानना ही नहीं चाहिए था। तपोवनियों को मूर्ख बनाकर भीषण को बाहर निकालनायह संभव हो ही नहीं सकता। मैंने तुमसे कुछ अधिक ही आशा कर ली थीअब मैं इससे आगे तुम्हारे साथ नहीं चल सकता।”
“जैसी तुम्हारी इच्छा क्षिराजतुम हार मान के पीछे हटाना चाहते हो तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं परंतु एक बात मेरी भी सुन लो, मेरे स्वामी को मुक्त होना है और वो होकर रहेंगे। हाँ, अगर तुम मेरा साथ देते तो यह जल्दी होता और अगर नहीं दोगे तो भी मुक्त तो उनको मैं करवा ही लूंगासमय भले ही इसमें थोड़ा अधिक लग जाएगा।”
परंतु कैसे भुजंगअभी तो बस शुरुआत थी। हमें तो भीषण की मुक्ति का रास्ता तक नहीं मिला था और उससे पहले ही यह सब हो गया। अब दूसरा अवसर मिलना असंभव हैं।”
“क्षिराज रास्ता मुझे मिल चुका हैतुम बस मेरा साथ दो और भरोसा रखो मुझपरहम सफल होकर रहेंगे।”
कौन सा रास्ता मिला है तुम्हें?”
“संयम रखो, अब हमें कोई नहीं रोक सकता हाँ, एक बात औरसूर्यनगरी में एक व्यक्ति है जो हमारी सहायता करेगा। तारकेन्दु को हमारे विरुद्ध गवाही देने से पहले ही…” भुजंग ने इशारे में ही उसे समझा दिया था। “तुमको बस यही तो चाहिए था ना?”
सूर्यनगरी में कौन व्यक्ति है जो हमारी सहायता करेगा?”
“अग्निवेश, सूर्यनगरी का महामंत्री।”
क्याअग्निवेश... वह तुम्हारे लिए काम कर रहा है?”
हाँक्यों विश्वास नहीं हो रहा?”
परंतु वह तुम्हारी सहायता क्यों कर रहा है?”
इस दुनिया में असंतुष्ट लोगों की कोई कमी नहीं हैएक खोजते हैं तो दस मिलते हैं। वह भी उतने में खुश नहीं है जितना उसको मिला है इसलिए मेरी सहायता करने को तैयार हो गया।”
ठीक है, मैं तुम्हारा साथ दूंगा परंतु अब आगे ध्यान रखनाकिसी प्रकार की लापरवाही नहीं होनी चाहिए भुजंग। अब भीषण का मुक्त होना मेरे लिए बहुत आवश्यक हो गया है अन्यथा ये तपोवनी हमें और तुम्हें दोनों को नहीं छोड़ेंगे। इनको केवल भीषण ही रोक सकता है।”
तुम निश्चिंत रहो, अब आगे कोई भूल नहीं होगी। तुम बस वो करो जो मैं कहूँ, कोई तुम्हारा एक बाल को नहीं छू पाएगा। ये मेरा वचन है तुमसे।”
भुजंग कौन सी चाल सोच रहा था या उसके पास अब दूसरा कौन सा रास्ता था भीषण को मुक्त करवाने कायह क्षिराज नहीं जानता था परंतु उसके पास अब भुजंग पर भरोसा करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचा था
*
कुछ देर बाद वेग दुष्यंत और बाकी सभी महल के मुख्य द्वार के सामने पहुँच गये थे। दुष्यंत के कहने पर वहाँ खड़े सिपाही प्रताप मेघ और विधुत को अतिथि महल की ओर ले गये। वेग और दुष्यंत एक साथ महल में प्रवेश करते हैं, भीतर का दृश्य सच में बहुत उल्लासपूर्ण था। महल में राज्य के सभी उच्च पदाधिकारियों का जमावड़ा सा लग चुका था। दुष्यंत को देखते ही सभी उसकी ओर बढ़े और बधाइयाँ देने लगे
राजकुमार दुष्यंतबहुत- बहुत बधाई हो आपको हम सब की ओर से।” महामंत्री अग्निवेश ने सब की ओर से बधाई देते हुए कहा तो दुष्यंत ने मुस्कुरा के उनकी बधाइयाँ स्वीकार की। “परंतु आप को इतनी शीघ्र कैसे मालूम हुआहमने तो बस कुछ समय पहले ही आश्रम में संदेश भेजा है” उसने थोड़ा आश्चर्य किया
महामंत्री जी, हम समय पर पहुँच गये क्या यह कम हैअब कैसेक्या और कब मालूम हुआ इसका कोई अर्थ नहीं है।” वेग के उत्तर पर सभी मंत्री गण मुस्कुरा दिए
“हाँ, यह भी सही कहा वेग ने... चलिए अच्छा हुआ जो आप लोग आ गये, आचार्य समद भी आ चुके हैं राजकुमारी को आशीर्वाद देने के लिए।”
“आचार्य समद! कहाँ हैं वो?” दुष्यंत ने पूछा।
“उन्हीं की तो प्रतीक्षा हो रही है यहाँ, वो आते हैं तब तक आइए मैं आप लोगों को महाराज तक लिए चलता हूँ इस प्रकार अचानक वो आप लोगों को देखेंगे तो उनको बहुत खुशी होगी।” अग्निवेश उनको लेकर एक ओर बढ़ा
“ठहरिए महामंत्री जी।” जब वेग ने देखा कि सभी मंत्री गण और अतिथि पीछे रह गये हैं जहाँ से वो उनको सुन नहीं सकते तो वेग ने अग्निवेश से कहा
क्या बात है वेग?” वेग के चेहरे के भावों से आशंकित सा होते हुए अग्निवेश ने पूछा
महामंत्री जी, हमें सबसे पहले महारथी विराट से मिलना है। क्या आप उन तक हमारा संदेश पहुँचा सकते हैं?” वेग यह कहते हुए बाकी सब को भी देख रहा था
क्या कोई गंभीर बात है वेगआप दोनों कुछ चिंतित से दिखाई दे रहे हैं।” अग्निवेश ने पूछना चाहा
नहीं महामंत्री जी, बात कोई अधिक गंभीर नहीं है परंतु गुरु शौर्य का एक संदेश उन तक पहुँचाना आवश्यक है। आप कृपया करके हमें महारथी विराट से मिलवा दें, अकेले में।” वेग ने कहा
अवश्यक्यों नहींआइए मैं आपको स्वयं ले चलता हूँअभी वो अकेले ही होंगे।” अग्निवेश उनको एक दिशा की ओर लेकर जाने लगा
वेग तुम महारथी विराट के पास जाओ, मैं पिता श्री को तब तक सब बताता हूँ।” दुष्यंत ने कहा
नहीं दुष्यंतमहाराज को बताएंगे परंतु महारथी विराट से चर्चा के बाद। पहले हमें केवल महारथी विराट से ही मिलना है और उनके हाथ में आगे का भार सौंपना है। यह निर्णय लेने का काम अभी भी उन्हीं का है।” वेग ने दुष्यंत को समझाया
उस चुड़ैल को जीवित छोड़ते हुए यह विचार नहीं आया था तुम्हें वेग।” दुष्यंत ने धीरे से मगर कटाक्ष में कहा थाजिसे केवल वेग ही सुन सका
दुष्यंत तुम कम से कम अब तो यह बात प्रारम्भ मत करोइस समय मैं उस विषय में बात नहीं करना चाहता हूँ।” वेग ने अप्रसन्न सा होते हुए कहा
कुछ कहा आपने।” अग्निवेश ने पीछे मुड़कर पूछा
नहींकुछ भी नहीं।” वेग ने कहा
मैंने कुछ चुड़ैल जैसा सुनामेरा भरम होगा हा हा हा... चलिए आगे चलते हैं।” वह ये कहकर आगे चलने लगा तो वेग और दुष्यंत ने भी चुप्पी साध ली

No comments:

Post a Comment