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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

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अध्याय 17 - नियम पाठ - भाग 2

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक

नियम पाठ - भाग 2

बहुत क्रांतिकारी सोच हो गई है तुम्हारी अंबिकाक्या तर्क हैं तुम्हारेरूपसी को भी फँसा लिया तुमने।” अजरा ने अंबिका की ओर देख कर कहावह आँखे नीचे करके खड़ी थी। “आगे क्या हुआ” अजरा ने फिर अक्षया से पूछा
उसके बाद ना जाने रूपसी हमसे कब अलग हो गई।” अक्षया यह कहकर चुप हो गई
कुछ देर चुप रहने के बाद अजरा ने ताली बजा के दासी को अंदर आने का संकेत दियाजिसे सुन तुरंत एक दासी अंदर आई
रूपसी को बुलाया जाए।” अजरा ने उसे आदेश दिया तो वह आदेश के साथ रूपसी को बुलाने चली गईअजरा वापस उन सब की ओर मुड़ गई
अब तुम लोगों में से मुझे यह कौन बताएगा कि अगर तुम विधारा से बाहर गये भी थे तो फिर एक दूसरे का साथ क्यों छोड़ा तुम लोगों ने?”
“भूल हो गई हमसे।” ईशानी ने कहा।
“केवल भूल? अपनी एक बहन को संकट में छोड़कर वहाँ से भाग कर आ गई तुम लोग। इसे तुम क्या केवल भूल कहोगे?” अजरा ने अंबिका को घूरा। “अंबिका जवाब दो।”
ऐसा नहीं है माता अजरा, हमें मालूम ही नहीं था कि कब रूपसी के साथ यह हादसा हो गया।” अंबिका ने कहा
हमने तो उसे ढूँढा भी था परंतु जब हमें वो कहीं नहीं दिखी तो हमें लगा कि वो लौट चुकी है।” अक्षया बोली
वाहतुम कहना चाहती हो कि पैदल चलने वाले मनुष्यों ने उड़ने वाली चुड़ैलों को मात देकर रूपसी को तुमसे पहले ढूँढ लिया। क्या तुम्हारा यह उत्तर कहीं से भी मानने योग्य है?” अजरा यह कहकर सब की ओर देखने लगी परंतु किसी के पास इसका जवाब नहीं था
मैं नहीं जानती, यह सब करके तुम्हें क्या आनंद मिलता है परंतु क्या उस आनंद के लिए तुम अपना कर्तव्य और दायित्व, दोनों को भुला बैठी होमुझे तुम लोगों से यह अपेक्षा बिल्कुल नहीं थी। तुम लोगों ने एक नहीं बल्कि गलती दर गलती कई गलतियां की हैं।”
माता अजरा।” रूपसी ने अंदर प्रवेश करते हुए कहा। “आपने बुलाया मुझे?”
हाँ, आ जाओ तुम भी।” अजरा ने कहा और उसके पास आने की प्रतीक्षा करने लगीरूपसी ने बाकी सभी को वहाँ देखा तो उसे समझते देर नहीं लगी कि वहाँ पर सब की खिंचाई चल रही है और अब उसकी बारी आ गई है
“भूल तो तुम कर चुकी हो और तुम्हें तुम्हारी भूल का दंड भी मिल चुका है। मैं बस यह जानना चाहती हूँ कि यह सब क्यों हुआ और तुम ने इन सब का साथ क्यों छोड़ा?”
वो मैं।” उसने एक बार अंबिका की ओर देखा। “मैं अपनी जिज्ञासा को काबू नहीं कर पाई और उन सिपाहियों के बहुत ही निकट पहुँच गई थी।”
“परिणाम देख लिया ना अपनी नादान जिज्ञासा का।” अजरा अब तक नरम हो चुकी थी। “अब तक जो गलती की है हम उसके लिए तुम्हें क्षमा करते हैं परंतु अच्छा होगा अगर यह दुबारा ना हो तो। तुम सब भी 

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