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अध्याय 16 - महारथी विराट - भाग 1

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अध्याय 17 - नियम पाठ - भाग 3

युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक

नियम पाठ - भाग 3


कान खोल के सुन लो।” इस बार अजरा का निशाना वाशवीईशानी और अक्षया थी। “अब यदि हमें पता चला कि तुममें से कोई भी हमारी जानकारी के बिना विधारा से बाहर निकला है तो फिर हमें तुम्हारे साथ कठोरता बरतनी होगी। यह हमें अच्छा नहीं लगेगा और शायद तुम्हें भी।”
हम आगे से ध्यान रखेंगी।” ईशानी ने कहा
और हाँ, ध्यान रहे आज से बिना आज्ञा के तुम लोग विधारा से बाहर तो क्या इस नगर से बाहर भी नहीं जाओगी।” सबने गर्दन को हां में हिला के सहमति प्रकट की। “तुम लोग अब जा सकती हो।” अजरा ने कहा तो सब मुड़ के जाने लगी
अंबिका और रूपसी तुम ठहरो अभी।” अजरा ने कहा तो दोनों रुक गई
अंबिका, जब हमारे अपने ही नियमों को तोड़ेंगे तो हम दूसरों से भी इसकी अपेक्षा नहीं कर सकते। तुम अब बड़ी हो चुकी हो और हम भी यह भली भाँति जानते हैं कि इस उम्र में बंदिशें किसी को भी पसंद नहीं होती। हम तुम्हारे पैरो में बेड़ियाँ डाल के नहीं रखना चाहते। तुम स्वयं बुद्धिमान हो, यह बालकों सा आचरण अब छोड़ो और अपने दायित्व को समझो।”
हमसे भूल हुई है माता अजरा हम क्षमा चाहते हैं।” रूपसी ने कहा
आशा करती हूँ आगे से तुम मुझे किसी प्रकार की शिकायत का अवसर नहीं दोगी।” अंबिका और रूपसी ने हाँ में सर हिला दिया। “ठीक है, अब जाओ तुम दोनों।”
उन दोनों के बाहर जाते ही मुग्धा ने अंदर प्रवेश किया। “मां, इस प्रकार से अपने बच्चों पर क्रोधित होने से क्या लाभ होगामनुष्यों के डर से क्या हम अपने बच्चों से उनके अधिकार छीन लें?”
मुग्धा, तुम फिर से वही बात लेकर खड़ी हो गई हो।”
तो और क्या करूँआप इन लोगों को अकारण दोष दे रहीं हैं। रूपसी के साथ जो कुछ हुआ उसमें इनका क्या अपराध है?” मुग्धा अजरा के व्यवहार से नाराज़ थी
मुग्धा, हम अच्छी प्रकार जानते हैं हम क्या कर रहे हैं और यही हम कई वर्षों से करते आ रहे हैं। परंतु अब हमें अहसास हो रहा है तुम बार-बार हमारे तरीकों का विरोध कर रही हो।”
क्षमा चाहती हूँ माता अजरा, परंतु मैं बस यह कहना चाहती हूँ कि मनुष्यों के अपराध का दंड हमारे बच्चे ना भुगतें।”
आँखें खोल कर देखोगी तो समझ में आ जाएगा तुम्हें कि यह हमारी अपने बच्चों के प्रति चिंता हैहम उन्हें सुरक्षित रखना चाहतें हैं। उनके साथ अगर हम थोड़ा कठोर भी हैं तो केवल उनके भले के लिए। और रही बात अपराध किसका है और उसका उसे क्या दंड मिलना चाहिए तो यह हम भली प्रकार से जानते हैं। तुम केवल अपने क्रोध पर काबू रखो।”
*
बाहर निकलने पर रूपसी ने अंबिका को रोका। “कहाँ चली गई थी तुम अंबिकामैं केवल तुम्हें खोजते हुए आगे चली गई थी और उन सिपाहियों की दृष्टि में आ गई।”

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