युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक
महारथी विराट - भाग 2
“केवल
संदेह?” उसने वेग की ओर देखा फिर विराट को। “महारथी विराट, मेरी
आँखों के सामने उस चुड़ैल ने मनुष्यों को कपड़ों की भाँति चिर के बिखेर दिया
था। उसके बावजूद भी अगर केवल
इसे संदेह कहा जाएगा तो यह हमारी सरासर मूर्खता ही होगी।” दुष्यंत ने अपना गुस्सा भी
साथ में प्रकट किया था।
“शांत हो जाओ तुम दोनों, इस प्रकार से हम योद्धाओं में अगर
मतभेद होने लगा तो हम कहाँ से अपने रास्ते तलाशेंगे। केवल विरोधियों को ही इस बात का
लाभ मिलेगा।” विराट की बात पर दोनों
शांत हो गये। “दुष्यंत, कई बार सच कुछ और
होता है जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता। हो सकता है कि जो देखा है
उससे भी कुछ अधिक अभी हमें मालूम ही ना हो। अभी किसी भी नतीजे पर पहुँचना ठीक नहीं होगा, थोड़ा समय भले ही लगेगा
परंतु हम सच सामने लाकर रहेंगे।” इतना कहकर विराट ने दोनों को थोड़ा आश्वस्त किया।
“महारथी, फिर अब आगे क्या
करना है?” वेग ने पूछा।
“करना तो वही है जो शौर्य
ने कहा है, क्योंकि नवराष्ट्रों की
नीति भी यही कहती है। यह केवल सूर्यनगरी, विधारा या इथार का अब
मुद्दा नहीं है। इस प्रकार की किसी भी घटना
का प्रभाव सभी राष्ट्रों के
संबंध पर पड़ता है। इतने वर्षों की शांति
और सहयोग के बाद अगर किसी ने भी संधि को तोड़ने की चेष्टा
की है या तोड़ा है तो उसका निर्णय भी सभी राष्ट्रों के सामने ही होगा। जो भी संदेह के दायरे में
आता है उसको सब के सामने ही जवाब देना होगा।”
“परंतु महारथी, ऐसी स्थिति
में इस बात को सब के सामने बाहर लाना क्या उचित होगा? जहाँ पूरा देश खुशी में
डूबा हुआ है, इस एक कारण से सब व्यर्थ हो जाएगा।” वेग ने कहा।
“तुम्हारी बात से मैं सहमत
हूँ वेग। मुझे भी इस आनंद में बाधा डालना अच्छा नहीं
लगेगा परंतु अगर क्षिराज वास्तव में कोई षड़यंत्र रच रहा है और हमें सच तक पहुँचने
में थोड़ा भी विलंब हो गया
तो … परिणाम
गंभीर भी हो सकते हैं।” विराट ने उनको प्रभावी
तरीके से समझाते हुए कहा। “फिर इस मामले में नाम भी
तो बहुत बड़े-बड़े लोगों के आ चुके हैं। एक ओर राजा क्षिराज है तो दूसरी ओर आरोप
रूपसी पर भी है, इसे सहजता से नहीं लिया जा
सकता है।”
“आप जानते हैं रूपसी को?” दुष्यंत ने चौंक कर पूछा, वेग ने भी विराट की ओर
आश्चर्य से देखा।
“हाँ, रूपसी भी कोई साधारण चुड़ैल नहीं है, विधारा की भावी महारानी
सुरैया की बेटी है वो। उस पर आरोप लगाना आसान
नहीं है। बिना ठोस प्रमाण के उस पर
आरोप लगाना चुडैलें कभी भी सहन नहीं करेंगी।”
“महारथी, वो सहन करें या ना
करें, हम इस बात की चिंता क्यों करें? उस चुड़ैल ने हत्याएँ की है
तो उसे दंड भी मिलना ही चाहिए। उसके कुछ होने से संदेह मे उसे राहत मिल जाए यह तो उचित
नहीं है महारथी।” दुष्यंत ने विराट की बात से असहमत होकर कहा।
“दुष्यंत, तुम्हारी यह उग्रता
इस समय तुम्हे शोभा नहीं दे रही है। ऐसी बहुत सी घटनाए अतीत में घटित हुई हैं जिनके
बारे तुममे से कोई नहीं जनता। इन सभी राष्ट्रो में विश्वास और घात दोनो प्रकार के अनेकों
किससे हैं जो तुम नहीं जानते। तुम सभी को बहुत कुछ जानना अभी शेष है। हमने कई वर्षों से और बहुत ही परिश्रम
से इन दो शत्रु जातियों को एक आकाश के नीचे बसा के रखा है। अब हमारी किसी भूल के
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