आरम्भ
वेग तारकेन्दु को लेकर आश्रम पहुँचा तब विधुत, प्रताप और मेघ आश्रम के बाहर ही खड़े थे।
“यह वेग किसको अपने साथ लेकर आया है? वो भी
इस प्रकार से!” प्रताप ने कहा तो सब की दृष्टि उस
ओर चली गई।
सब
कोतुहल से उसे देखने लगे और जब वह समीप पहुँचा तो। “क्या बात है वेग, यह कौन है और क्या किया है इसने जो तुम इसे यूँ बाँध कर लाए हो?” विधुत ने पूछा।
“सब बताता हूँ विधुत, परंतु पहले गुरु शौर्य के पास चलते हैं। कहाँ हैं वो?”
“गुरु शौर्य अंदर आश्रम में ही हैं परंतु वे चोटिल हैं।” प्रताप ने बताया। “क्या मिलना बहुत आवश्यक है वेग?”
“हाँ, क्योंकि बात कुछ अधिक गंभीर है। परंतु गुरु शौर्य चोटिल कैसे हो
गये?” वेग ने चौंक कर पूछा।
“कुछ बताया नहीं है अभी गुरु शौर्य ने, अच्छा होगा वहीं चलते हैं।” इसके साथ ही सभी अंदर चले गये।
“गुरु
जी, आप ठीक हैं?” अंदर प्रवेश
करते ही वेग ने पूछा।
शौर्य जो अभी तक अपने घाव को
साफ करने का प्रयत्न कर रहे थे, उन्होंने पलट कर देखा।
“हाँ, मैं ठीक हूँ, मुझे क्या हो सकता है? बस मामूली सा घाव है ठीक हो जाएगा। चिंता वाली बात नहीं है मेरे बच्चों।” शौर्य ने
इतना कहा था कि उनकी दृष्टि तारकेन्दु पर गई। “यह कौन है वेग?”
“गुरु
जी, यह इथार देश का एक सेना नायक है। इसका नाम है तारकेन्दु।”
“क्या किया है इसने?”
“इसकी और इसके साथियों की गतिविधियाँ संदिग्ध थी इसलिए मैं इसे पकड़कर यहाँ
ले आया हूँ। इसने आश्रम के क्षेत्र में घुसकर एक चुड़ैल
को आहत किया है और ऐसा इन्होंने क्यों किया है? इसका अभी तक इसने कोई संतोषजनक उत्तर भी नहीं दिया है। मैं अगर समय पर ना पहुँचता तो ये लोग उसे पकड़ कर ले जाने वाले थे।”
“किस चुड़ैल को आहत किया है इसने?” शौर्य ने पूछा।
“रूपसी उसका नाम था गुरु जी।” वेग ने कहा।
“रूपसी?” शौर्य ने चौंक कर पूछा।
“हाँ गुरु जी रूपसी, यही नाम था।” वेग से यह नाम सुनकर शौर्य के चेहरे पर चिंता उभर आई थी, वह अपने हाथ को सहारा देते हुए उठे और तारकेन्दु की ओर बढ़े।
“क्या बताया इसने अभी तक, इन्होंने ऐसा क्यों
किया?” शौर्य ने पूछा।
“नहीं गुरु जी, इसने कुछ अधिक नहीं बताया है।” इसके
साथ वेग ने सारी घटना शौर्य को कह सुनाई।
पूरा घटनाक्रम जानने के बाद शौर्य गहरी सोच में पड़ गये। वह
घबराए हुए से खड़े तारकेन्दु के समीप पहुँच गये और
उसकी आँखों में देखा। “तुम
जानते हो हम तुमसे सच उगलवा ही लेंगे, तुम यह अधिक समय
तक हमसे नहीं छुपा सकते हो। अब यह तुम्हारी इच्छा है कि
तुम बिना पीड़ा के यह करना चाहोगे या...”
“मैं सच कह रहा हूँ महायोद्धा, मैं कुछ नहीं जानता। मेरा विश्वास कीजिए मैं तो केवल आदेश का पालन कर रहा था।”
“ठीक है, जब तुम स्वयं ही नहीं चाहते कि तुम्हारे साथ कोई
कठोरता ना बरती जाए तो...” शौर्य ने पलटकर विधुत की ओर देखा। “विधुत, इसे लेकर
जाओ, मुझे आशा है यह तुम्हें अवश्य कुछ बताएगा।”
“मैं सच कह रहा हूँ, मुझे जो पता था मैंने बता दिया।”
“चलो, अभी तुम्हें और भी कुछ स्मरण हो जाएगा।” विधुत उसे पकड़कर बाहर की ओर ले
जाने लगा।
“मेरा
भरोसा कीजिए योद्धा, मैं सच कह रहा हूँ।” वह विधुत की पकड़ से छूटने के लिए
छटपटाने लगा। “योद्धा एक जानकारी है मुझे,
शायद आपके काम आ सके।”
“कहो।” शौर्य ने विधुत को हाथ से
रुकने का संकेत किया।
“राजा क्षिराज की मंशा के बारे में तो मुझे
नहीं पता परंतु यह सच है कि वो कुछ तो ऐसा कर रहे हैं जिसमें निसंदेह
ही उस चुड़ैल आवश्यकता तो है, और…”
“और क्या?”
“और यह वो अकेले नहीं कर रहे हैं, कोई और भी
इसमें शामिल है।”
“और कौन शामिल है?”
“उसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था परंतु पिछले कुछ दिनों से वह इथार में लगातार दिखाई दे रहा है। यहाँ तक कि
हमारे इस अभियान का नेतृत्व भी वही कर रहा था। राजा
क्षिराज का इसमें क्या स्वार्थ है, मुझे नहीं पता परंतु उसके कहने पर महाराज
क्षिराज ने अपने बहुत से सैनिक उस चुड़ैल को ढूँढने में लगा दिए थे। हम लोग बहुत समय से उस चुड़ैल को खोज रहे
थे।” तारकेन्दु की बातों से शौर्य के चेहरे पर परेशानी
दिखाई देने लगी थी।
“नाम क्या है उसका?”
“भुजंग।”
“और क्या जानते हो उसके बारे में?” शौर्य के इस
प्रश्न के जवाब में तारकेन्दु ने गर्दन हिला के अपनी असमर्थता प्रकट कर दी।
“मेघ, इसे बाहर लेकर जाओ।” शौर्य ने कहा।
“जी, गुरु जी।” मेघ तारकेन्दु को बाहर की ओर ले
गया।
“राजा क्षिराज का इस सब के पीछे क्या
षड़यंत्र हो सकता है? एक चुड़ैल की सहायता से वह
अपना कौन सा स्वार्थ पूरा करना चाहता है?” शौर्य अपने
आप से ही जैसे कुछ प्रश्न कर रहे थे।
“इस प्रश्न का उत्तर तो केवल राजा क्षिराज ही दे सकते हैं।” प्रताप ने कहा।
“हूँ... दे सकता है पर देगा नहीं।”
“क्यों? हमारे पास साक्षी है, हम राजा क्षिराज को बाध्य कर सकते हैं इसका कारण बताने के लिए।”
“इतना आसान नहीं है प्रताप, एक राजा पर
सीधे आरोप लगाना इतना सरल काम नहीं है
वो भी बस एक सेना नायक की निशानदेही मात्र से। क्षिराज बहुत दुष्ट होने के साथ
चतुर भी है, वह आसानी से अपने अपराध को नहीं स्वीकरेगा। इसका पता तो हमें स्वयं ही
लगाना होगा कि एक चुड़ैल उसकी मंशा को कैसे पूरा कर सकती है?” शौर्य ने कहा।
“कैसी
मंशा गुरु जी? क्या आप जानते हैं वह क्या करना चाहता है?” वेग ने प्रश्न किया।
“वही
जो सदा से मनुष्य का सबसे बड़ा लोभ रहा है, शक्ति और साम्राज्य। बस
उसका भी यही लोभ है। तुम लोगों को पता होना चाहिए उदीष्ठा के बाद मित्र राष्ट्रों में यह दूसरा सबसे
बड़ा राष्ट्र है। जब तक इस राष्ट्र का शासन राजा विधान अर्थात क्षिराज के पिता के हाथ में था तब तक
किसी प्रकार की समस्या नहीं थी, परंतु क्षिराज की महत्वाकांक्षा इसके नियंत्रण में नहीं है।
सिंहासन पर आने के बाद से क्षिराज ने कई बार संयुक्त राष्ट्रों
की एकता को भंग करने का प्रयत्न किया है। उसने बाकी के
देशों को भड़काने का भी बहुत प्रयास किया परंतु उसकी चाल सफल नहीं हो सकी।” शौर्य ने यह कह कर वेग की ओर
देखा।
“वेग, तुम्हारी तो क्षिराज से बहुत अच्छी भेंट भी हो चुकी है।”
“मैं
इसे कैसे भूल सकता हूँ गुरुजी, मेरे भाग्य की रचना में राजकुमार क्षिराज की भूमिका
तो विशेष थी।”
“दुर्भाग्य
से राजा विधान के बाद इथार का राज्य इसको विरासत में मिल गया है। इससे और अपेक्षा
भी क्या की जा सकती है?”
“क्या कहानी है इसकी गुरु जी, और वेग इसे कैसे जानता है?” विधुत ने पूछा।
“वेग
से हमारी पहली भेंट इसी क्षिराज के कारण संभव हो सकी थी विधुत। किंतु अभी वह कहानी बताने का समय नहीं है, अगली बार
मैं अवश्य तुम्हें वह सुनाऊँगा।”
“अगर उसे संयुक्त राष्ट्रों की के एकता
से आपत्ति है तो वह अपने आप को अलग क्यों
नहीं कर लेता?” प्रताप ने फिर पूछा।
“क्षिराज यह नहीं कर सकता है क्योंकि उसे संयुक्त राष्ट्रों से अलग होने से
कोई लाभ नहीं है, उसकी मंशा इन राष्ट्रों पर
अधिकार प्राप्त करने की हैं। जब तक सभी देश संयुक्त
रहेंगे वह अपनी मंशा पूरी नहीं कर सकता और हो ना हो यह घटना उसके किसी षड़यंत्र का ही परिणाम है जिसके बारे में अंजाने ही हमें
भी पता चल चुका है। और इस बात का
पता उसे अब शीघ्र ही चल जाएगा, वह अपना जवाब सोच कर रखेगा।” शौर्य यह कहकर फिर
कुछ सोचने लगे।
“तो अब क्या रास्ता है सच जानने का?” प्रताप ने
पूछा।
“सच तो पता लगाना ही होगा परन्तु अभी जो समस्या सामने दिखाई दे रही है पहले
उसका समाधान करना आवश्यक है।” शौर्य ने कुछ सोचकर कहा।
“कैसी समस्या गुरु जी?” वेग ने पूछा, प्रताप और
विधुत भी जानने के लिए उत्सुक हो रहे थे।
“एक चुड़ैल पर हमला कर के क्षिराज ने उस संधि को तोड़ा है जो कि हमारे हस्तक्षेप से कई वर्षों पहले मनुष्यों और चुड़ैलों के बीच
में हुई थी। इस हमले से अगर चुड़ैलें उग्र हो गई तो
उन्हें समझाना बहुत कठिन हो जाएगा।” कहकर शौर्य कुछ देर
के लिए चुप हो गये। “अब मुझे ही उनको शांत करने के लिए जाना
होगा।”
“वेग, तुम और मेघ इस तारकेन्दु को लेकर इसी समय सूर्यनगरी के लिए रवाना
होगे और वहाँ पहुँचकर विराट को इस विषय में सब बताओगे।”
शौर्य ने वेग को आदेश देकर विधुत की ओर देखा। “विधुत,
तुम दुष्यंत और प्रताप को लेकर शीघ्र उस दिशा में जाओगे जिधर इसके बाकी साथी गये
हैं, किसी भी प्रकार से तुम्हें उन्हें क्षिराज के
पास पहुँचने से रोकना है।”
“वह किसलिए गुरु जी?” विधुत ने पूछा।
“क्योंकि अगर तुम्हारे पहुँचने से पहले वो क्षिराज के पास पहुँच गये तो वह
उनको जीवित छोड़ने का जोखिम कभी नहीं उठाएगा। वह हर
उस साक्ष्य को मिटाने का प्रयास करेगा जिसके द्वारा
हम उसका षड़यंत्र उजागर कर सकते हैं। उन्हें ढूंढो और अपने साथ लेकर सूर्यनगरी पहुँचो।” शौर्य ने कहा।
“जैसी आज्ञा गुरु जी।” विधुत ने कहा।
शौर्य के इस संदेह ने परंतु वेग को दुखी कर दिया था, यह
शौर्य ने भी महसूस कर लिया था कि वेग बाकी के सिपाहियों के लिए चिंतित था और शायद
उसे लग रहा था उन्हें वापस भेज कर उसने उनके प्राणों को जोखिम में डाल
दिया है।
“वेग,
तुम अपने मन को दुखी ना करो क्योंकि तुमने कोई अपराध नहीं किया है। तुमने अपनी
बुद्धि से जो निर्णय लिया वह उस समय सही था इसलिए व्यर्थ ही अपने आप को दोषी मत
समझो।”
“गुरु
जी, अनजाने ही सही परंतु मैंने उनको संकट में डाला है, अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं उनको खोजने जाना चाहता हूँ।” वेग ने प्रार्थना करते हुए कहा।
“वेग, बहुत देर हो चुकी है और उनके बचने की संभावना बहुत कम है। अभी तुम्हारे सामने एक और चुनौती है, तारकेन्दु
को सुरक्षित सूर्यनगरी पहुँचाने की चुनौती। क्योंकि क्षिराज इसको सूर्यनगरी पहुँचने से रोकने का हर संभव प्रयास करेगा
और मैं चाहता हूँ कि यह काम तुम पूरा करो।” यह कहकर
शौर्य ने उसकी इच्छा जाननी चाही।
“जो आज्ञा गुरु जी।” वेग ने शौर्य की बात को
विनम्रता से स्वीकार कर लिया।
“गुरु जी,” विधुत अचानक बोला। “दुष्यंत अभी तक लौट कर नहीं आया है।”
“देर करना उचित नहीं है विधुत, तुम प्रताप को
लेकर अविलंब रवाना हो जाओ। अगर दुष्यंत वापस आता है तो
सुदर्शन उसे सूर्यनगरी पहुँचने के लिए कह देगा। इसके
अलावा अगर अभी भी कोई संदेह है तो मुझसे पूछ सकते हो।” शौर्य ने सभी की ओर
प्रश्न भरी दृष्टि से देखा परंतु किसी के पास पूछने के लिए कुछ भी नहीं था।
“तो फिर शीघ्र तैयार हो जाओ और मुझसे बाहर मिलो।”
*
थोड़ी देर के बाद सभी अपनी-अपनी दिशा की ओर रवाना
होने के लिए तैयार थे। वेग ने तारकेन्दु को ले जाने के
लिए आश्रम में ही उपलब्ध एक बग्घी तैयार कर ली थी। गुरु
शौर्य के आदेश की प्रतीक्षा बस थी। शौर्य सुदर्शन
को कुछ निर्देश देने के बाद उनके समीप पहुँचे।
“मेरे
बच्चों, आज यह अभ्यास नहीं है बल्कि वर्षों के अभ्यास को इस्तेमाल करने का समय है।
हो सकता है कि मेरे संदेह के विपरीत यह बात बहुत साधारण हो और हो सकता है कि यह मेरी
सोच से भी कहीं अधिक गंभीर हो।”
शौर्य
कहने के साथ ही अपने अश्व को तैयार भी कर रहे थे। “हमारे साथ कई बार ऐसा हुआ है, जिस
मसले को हमने गंभीर जान पूरी शक्ति झोंक दी अंत में पता चला कि कुछ भी नहीं था। स्वयं
पर हँसी भी आई परंतु बिना सच की गहराई तक पहुँचे, किसी भी बात की उपेक्षा करना घातक
सिद्ध होता है। शौर्य उन चारों की आँखो में बारी बारी से देख रहे थे।
जैसे कि खोदा पहाड़ और निकाला चूहा।” मेघ के मुहावरे को सुन
दो पल वहाँ चुप्पी छा गई। बाकी तीनो भी मेघ को देख रहे थे। मेघ सोच में पड़ गया था
कि क्या उसने फिर से ग़लत मुहावरा तो नहीं बोल दिया है।
“हाँ
मेघ वही, आज तुमने सही मुहावरा कहा है।"
तीनो
के चेहरों पर आश्चर्य मिश्रित मुस्कुराहट थी। क्योंकि मेघ प्राय बेमेल मुहावरे ही कहता
था। शौर्य ने आगे कहा। "कई बार मालूम होते हुए भी पहाड़ खोदना
पड़ता है। किसी भी बात पर अपना पक्ष मजबूत
करने से पहले सही तथ्य हाथ में होना आवश्यक है।”
“हम इस बात का ध्यान रखेंगे गुरु जी।” प्रताप ने कहा।
“एक
बात और भी जान लो कि तुम्हारी यात्रा आज से आरंभ हो चुकी है, आज से निर्णय तुम्हारे
अपने होंगे और मुझे तुम पर भरोशा है, तुम फ़ैसले कर सकते हो। क्या तुम प्रतिज्ञा दोहराओगे।"
"सज्जन
से विनम्रता" वेग ने पहले कहा।
"और
दुर्जन को सबक," यह प्रताप ने कहा था।
"इससे
समझौता," मेघ ने कहा।
"कभी
नहीं, कभी नहीं" विधुत ने कहा।
"स्वयं
के अंत तक।" क्योंकि दुष्यंत उपस्थित नहीं था प्रतिज्ञा का अंतिम वाक्य शौर्य
ने कहा।
“आपके
आशीर्वाद और मार्गदर्शन की हमें सदा आवश्यकता होगी।” विधुत ने कहते हुए हाथ जोड़ लिए
और मस्तक को झुका लिया। उसके साथ बाकी तीनो ने भी वही किया।
“वो
तुम्हारे साथ सदा रहेगा।” शौर्य ने आशीर्वाद मुद्रा मे हाथ उठा लिया था।
सभी
सामान्य स्थिति मे लौट आए, शौर्य अश्व पर सवार हो गये थे। उन्होने कहा “परिस्थिति चाहे
कितनी भी कठिन हो, बाधा चाहे कितनी भी बड़ी हो, बस स्वयं पर से अपना विश्वास कभी खोने
मत देना क्योंकि इस विश्वास के सहारे तुम कोई भी संकट आसानी से पार निकल सकते हो...
स्मरण रहे विश्वास में ही परमात्मा है।”
थोड़ा रुक के फिर शौर्य ने कहा। “तो अब
हमारी भेंट सूर्यनगरी में होगी तब तक के मुझे विदा दो, फिर मिलेंगे मेरे बच्चों।” यह कहते हुए उनके चेहरे पर
एक मुस्कुराहट थी।
“अवश्य गुरु
जी, फिर मिलेंगे।” सभी ने एक साथ कहा और तब सब अपने-अपने गंतव्य की ओर
बढ़ चले।
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