युगान्धर-भूमि
ग्रहण की दस्तक
उदीष्ठा
उदीष्ठा
की राजधानी सूर्यनगरी। जैसा योद्धाओं ने सोचा था, उनको बुलाने का कारण चुड़ैलें ही
थी।
“बहुत कठिन दौर से गुजर रहे हैं महायोद्धा शौर्य हम। कुछ समय से तो यह बिल्कुल ही नियंत्रण से
बाहर हो गया है।”
“आपको हमें पहले ही सूचना दे देनी चाहिए थी महाराज बाहुबल, हमने देखा था रास्ते में लोग किस प्रकार भय के साये में जी
रहे हैं।” शौर्य बोले।
“हमें लगा था हम इसे संभाल सकते हैं परंतु हम गलत थे। नहीं मालूम था कि यह बहुत गंभीर है।”
“क्षमा कीजिए परंतु आप जैसे राष्ट्र के लिए, जिसकी
ख्याति है दूर-दूर तक… यह चुड़ैलें इतना बड़ा संकट दिखाई नहीं देती।” देव ने कहा।
“यही भ्रम हमें भी था योद्धा, जिसका परिणाम
हमारे सामने है।”
“आपने उनको रोकने के लिए क्या किया है अब तक?” देव ने ही दुबारा
पूछा।
“हमने
तो हमारी ओर से हर संभव प्रयास करके देख लिया है, इसमें भी हानि हमें ही उठानी पड़
रही है।”
“सेना
का उपयोग?” प्रताप ने जानना चाहा।
“सामना
कहीं खुले मैदान में हो तो सेना अवश्य कुछ कर सकती है, परंतु... विधारा के उन घने जंगलों में सेना
का उपयोग करना अपने ही सिपाहियों के
प्राणों को संकट में डालने के जैसा है।
“क्या आपने यह प्रयास किया है पहले?” शौर्य ने पूछा।
“हाँ, सर्वप्रथम यही किया था, एक दो को मार भी
दिया तो क्या? वो बदले में हमारे सैकड़ों सिपाहियों को
मौत के घाट उतार देती हैं। अब तक हमारे कई सैनिकों को निगल चुका है वो
भयानक जंगल। उस जंगल में कोई नहीं पहुँच सका है आज तक। जान बुझ
कर हम कब तक अपने सिपाहियों को यूँ मौत के मुंह में धकेलें…? और सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि हमारी ऐसी
किसी कार्यवाही के बाद आम जन पर चुड़ैलों के हमले बढ़ जाते हैं।” बाहुबल कहे जा रहे थे। “अब हर गाँव और नगर में तो
सेना को नहीं बैठाया जा सकता है ना। लोगों का भरोसा हम
पर से समाप्त हो रहा है। विधारा की सीमा वाले क्षेत्रों में सैनिकों की गश्त बढ़ा दी है परंतु यह कोई समाधान नहीं है।?
“और बाकी देश! उनकी क्या रणनीति है?” विराट ने पूछा।
“उनकी रणनीति भी किसी के हित में नहीं है। इथार, कम्पीलिया और त्रिपाला राष्ट्र ने तो आक्रमण की तैयारी कर ली है और हमसे
भी वो इसमें सहयोग की मांग कर रहे हैं। मीलों तक फैला
विधारा और उसके अंदर कहाँ छुपी हैं ये चुड़ैलें? हमें कुछ
नहीं पता और चुड़ैलें तो विधारा के जंगल के हर कोने से भली
भाँति परिचित हैं। जैसा पहले भी हो
चुका है सेना की टुकड़ियाँ जंगल में प्रवेश करने का प्रयास करेंगी और
वहीं से उनके रक्त की नदियाँ बहनी प्रारम्भ हो जाएँगी। संख्या में हम उनसे भले ही
अधिक हों परंतु जब तक शत्रु दिखाई ना दे हमारे सिपाही क्या कर सकते हैं?”
“आपने
कहा कि कुछ समय से इनका आतंक बढ़ गया है, अर्थात
पहले ऐसा नहीं था?” शौर्य ने प्रश्न
किया।
“नहीं ऐसा नहीं है कि पहले ये कुछ भी नहीं करती थी। कभी कभार इनके हमले होते थे और हमने भी तब
कई चुड़ैलों को समाप्त किया था। उस समय शायद इन
चुड़ैलों में भी कहीं ना कहीं हमारा भय था परंतु अब तो जैसे उन्हें किसी बात का डर
नहीं रहा।”
“कोई तो कारण होगा महाराज, जो ये इस प्रकार से मनुष्यों की शत्रु बन गई।”
“यह
जाति तो मनुष्यों की शत्रु सदा से ही हैं योद्धा, अब बस इन्होने अपना वास्तविक रूप
दिखाना आरंभ कर दिया है।” बाहुबल कुछ देर चुप हो गये फिर आगे कहा। “आस
पास के देशों की यह एकल समस्या है। जो जंगलों पर आश्रित
थे, उन कई सहस्त्र लोगों के तो व्यवसाय बंद हो चुके हैं। लोग घर, गाँव
छोड़कर नगरों में आने को विवश हो रहे हैं। हम…हम त्रस्त हो चुके हैं इन चुड़ैलों से, जाने
कहाँ से निकल के आती हैं और लोगों को अपना शिकार बना के फिर कहीं छुप
जाती हैं। फिर इनको ढूंढ़ना भी तो आसान नहीं है, हमारे बीच में होते हुए भी हम
उन्हें पहचान नहीं पाते हैं।” बाहुबल की बातों से उनकी पीड़ा
झलक रही थी।
“वो
कहते हैं कि कोई दूसरा मार्ग नहीं है। मैं जानता हूँ कि एक जुट होकर सेना का
प्रयोग करने से हम उन्हें शायद पराजित भी सकते हैं परंतु इसमें हमारी सेना को
कितनी बड़ी हानि उठानी होगी, इस बात की सभी उपेक्षा कर रहे है। उन सिपाहियों के परिवारों, उनके बच्चों का क्या
होगा जो लौट नहीं पाएंगे उस भयानक जंगल से? इन
राष्ट्रों को यह दिखाई नहीं दे रहा है। इन चुड़ैलों को हम भी समाप्त कर
देना चाहते हैं परंतु इस मूल्य पर…” थोड़ी देर चुप
रहकर बाहुबल ने फिर गंभीरता से कहा। “बहुत कम समय है हम
लोगों के पास क्योंकि वो शीघ्र ही आक्रमण करने
वाले हैं और मैं… मैं ना तो मना करने की स्थिति में हूँ और ना ही उनका
साथ देने की स्थिति में। मैं नहीं जानता कैसे, परंतु केवल आप
लोग ही अब कुछ कर सकते हैं। इस त्रासदी को होने से रोक लीजिए
महायोद्धा, रक्षा कीजिए हमारे निर्दोष लोगों के प्राणो की ।”
“महाराज, आप अब निश्चिंत रहिए हम लोग आ गये हैं, इसका
हल अवश्य ढूँढ लेंगे।” शौर्य ने बाहुबल
को आश्वासन दिया।
“अब
बस आपसे ही आशा थी इसीलिए आपको संदेश भेजा।”
“आप
सर्वप्रथम तो सभी देशों से हमारी एक भेंट का प्रबंध कीजिए।” कुछ विचार करके शौर्य
ने कहा।
“हम
सब भोर में ही इथार के लिए निकल सकते हैं। इथार नरेश महाराज विधान को मैंने आप
लोगों के आने तक बस रोक के रखा था।”
बाहुबल से मुलाकात के कुछ समय के बाद।
“उन्हें कह तो दिया है परंतु क्या यह इतना आसान होगा शौर्य?”
“अब जो भी हो, वैसे भी हम आसान काम करते ही कहाँ
हैं।” विराट के प्रश्न का जवाब यूँ दिया था शौर्य ने।
“परंतु इनसे लड़ना कुछ अधिक ही जटिल होने
वाला है, उन पाँच छः चुड़ैलों से लड़ना मुझे कितना भारी
पड़ा था, ये मैं ही जानता हूँ। बहुत शक्तिशाली
हैं ये चुड़ैलें।”
“अब कुछ भी हो इन्हें रोकना तो आवश्यक है।”
“तो अब सबसे पहले हम क्या करें?” तेजस ने पूछा।
“बाकी देशों को रोकने और इस आतंक के प्रारम्भ होने का कारण जानने का प्रयास।”
*
शीघ्र
ही बाहुबल सभी योद्धाओं को लेकर ईथार पहुँच गये थे, राजा विधान के अलावा कम्पीलिया
के राजा भूमिंजया और ईथार राष्ट्र के कुछ प्रतिनिधि इस समय वहाँ मौजूद थे।
सर्वसम्मति से विधान को अब कोई निर्णय लेना था और इसी के पक्ष-विपक्ष में वहाँ बहस
हो रही थी।
“महाराज बाहुबल, हमें इनकी वीरता पर कोई संदेह नहीं है परंतु ये बस पाँच
हैं… ये कैसे उनका सामना कर पाएंगे?” इथार नरेश विधान ने अपना अविश्वास प्रकट
किया।
“यह कोई विकल्प नहीं है महाराज, बिना विलंब किए हमें अब जल्द ही आक्रमण कर देना चाहिए।” कम्पीलिया
के राजा भूमिंजया का भी मत यही था।
“हाँ और अब तो तपोवनी भी हमारे साथ
हैं। महाराज बाहुबल, उन्हें उनके बिल से
निकाल कर मारना इतना कठिन नहीं है जितना आप समझ रहे हैं।” राजा विधान बोले।
“महाराज, जंगल के भीतर कहाँ से और कैसे घुसना है? अभी तक यह तो निश्चित नहीं हुआ है और आप उन्हें उनके बिल से निकालने की
बात कर रहे हैं। स्मरण है ना पिछली बार क्या हुआ था।” बाहुबल ने कहा।
“इस
बार वैसा नहीं होगा महाराज बाहुबल, भरोसा रखिए।” विधान
ने कहा तो बाहुबल ने प्रश्न भरी आँखों से उसे देखा। “हाँ, क्योंकि हम जंगल का रास्ता चुनेंगे ही नहीं जहाँ वो हम पर छुप कर हमला कर सकें।”
“तो फिर?”
“हम समुद्र के रास्ते से हमला करेंगे।”
“यह सरासर मूर्खता होगी, हमारे पास ना तो इतने जहाज
हैं और ना ही उनके ठिकाने की ठीक से कोई जानकारी। और फिर हमने बस सुना है कि उनका ठिकाना पश्चिम में समुद्र तट पर है, इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं हमारे पास।” बाहुबल भी अपनी बात पर बल देकर कह रहे थे।
“उनका ठिकाना समुद्र तट पर ही है, इस बात
का प्रमाण बहुत से मछुआरों ने दिया है।” राजा भूमिंजया ने विश्वास भरे शब्दों में कहा था।
“और वहाँ तक पहुँचेंगे कैसे? ऊदिस्ठा के पास
कुल अठारह युद्धक पोत हैं, माल वाहक जहाज भी मिला
लिए जाएँ तो भी तीस से अधिक नहीं हैं।” यह कहकर बाहुबल भूमिंजया को देखने लगे। “और
उदीष्ठा के अलावा केवल आपके पास ही कुछ युद्धक पोत हैं, अगर मैं ठीक हूँ तो कुछ दस
या बारह है। अधिकाधिक पाँच-छः हज़ार सैनिकों को ले जाया जा सकता है, हम हमारी सेना
को पहुँचाएंगे कैसे वहाँ तक?”
“हमारी रणनीति के लिए इतने पर्याप्त हैं
महाराज, और अगर कम भी पड़े तो आप त्रिशला महाराज उद्धवराग से उनके जहाज ले सकते
हैं, वो आपको मना नहीं करेंगे।” भूमिंजया ने कहा।
“रणनीति! रणनीति क्या है आपकी?” शौर्य ने जानना चाहा।
“हम हमारी जितनी सेना को भेज सकेंगे समुद्र के रास्ते से भेजेंगे। मगर लड़ने के लिए नहीं, चुड़ैलों को केवल उलझाकर रखने के लिए।” बाहुबल के साथ सभी योद्धा भी उसकी युक्ति को
ध्यान से सुन रहे थे। “हाँ उलझा कर रखने के लिए ताकि हमारी
बाकी की सेना जंगल में रास्ता बना कर आगे बढ़ सके और एक बार हम वहाँ तक पहुँच गये
तो… मुझे क्या अब आगे बताना पड़ेगा?”
“विधारा का पश्चिमी तट चट्टानों से अटा पड़ा है, सेना को किनारे उतारने का काम आसान नहीं होगा। और अगर किनारे पर पहुँचने से पहले चुड़ैलों को इसकी सूचना हो गई तो फिर यह
बहुत प्राणघातक भी हो सकता है।” बाहुबल कहीं भी संतुष्ट दिखाई नहीं दे रहे
थे।
“महाराज, युद्ध में बलिदान देने पड़ते हैं, युद्ध में हर सिपाही जीवित लौट के आए यह संभव नहीं है।” भूमिंजया के इस विचार से बाहुबल के साथ योद्धा भी परेशान दिख रहे थे।
“महाराज बाहुबल, राजा भूमिंजया सही कह रहे हैं। यह बलिदान तो देना ही होगा, इसके अलावा और
कोई रास्ता भी हमारे पास नहीं है।”
“आपकी
रणनीति बुरी नहीं है महाराज विधान,” इस बार विराट ने कहा। “परंतु इसके बाद भी यह
तो निश्चित है कि इस युद्ध का दंश आपको भी झेलना होगा। दूसरी बात, इस अभियान के
सफल होने के आसार इतने अधिक भी नहीं दिख रहे है क्योंकि यह केवल अनुमान पर आधारित
है।”
“तो क्या आप लोगों के पास इससे अच्छा सुझाव है?” राजा भूमिंजया ने तैश में आकर पूछा।
विराट सोच में पड़ गया। “हमें
थोड़ा समय चाहिए।”
“हमारे लोग मर रहे हैं, समय हमारे पास अब
बिल्कुल भी नहीं है। और फिर उन अनगिनत शैतानों के आगे
आप थोड़े समय में कर भी क्या सकते हैं?”
“अधिक नहीं बस हमें दो सप्ताह का समय दीजिए, हम
इनके आतंक को रोकने का कोई ना कोई रास्ता अवश्य ढूंढ़ लेंगे, जिसमें हमारी
अधिक हानि ना हो।” शौर्य ने कहा।
“नहीं योद्धाओं, इतना समय हम नहीं दे सकते, कहीं हमारी रणनीति की भनक उन तक पहुँच गई
तो हमारी सारी तैयारी व्यर्थ हो जाएगी। पाँच दिन… बस इससे अधिक नहीं, उसके बाद हम हमला करेंगे।”
शौर्य ने अपने बाकी साथियों की ओर देखा, समझाने
का कोई प्रभाव नहीं था यहाँ।
“तो फिर ठीक है, हमारे लिए पाँच दिन
पर्याप्त हैं। महाराज विधान, हमें आपके कुछ
अनुभवी सैनिकों की आवश्यकता है। हमें अपना काम शीघ्र ही प्रारम्भ करना होगा।”
शौर्य
ने मन ही मन कुछ निर्णय कर लिया था, सभी उसकी दृढ़ता को देख उसकी मंशा समझने
का प्रयास कर रहे थे। यही हाल बाकी के योद्धाओं का भी
था।
*
सभा के समाप्त होने के बाद। “शौर्य,
यह बहुत कम समय है, पाँच दिन में हम भला क्या कर सकते
हैं?” तेजस परेशानी से बोला। “हमें
कुछ पता नहीं कि कहाँ से और क्या शुरुआत करनी है?”
“वो भी तो हठ पर अड़े हुए हैं, अब हमें कुछ तो
करना ही होगा।”
“परंतु क्या? कुछ सोचा भी है तुमने?”
“सबसे पहले तो यह जानना है कि चुड़ैलें यह क्यों कर रही हैं?”
“यह तो वह चुड़ैल बता ही चुकी है, मनुष्यों को
विधारा से पीछे खदेड़ना ही उनका लक्ष्य है।” विराट ने कहा।
“परंतु अचानक यह सब क्यों प्रारम्भ हो गया? जैसा कि गुरु दक्ष ने बताया
था, ये चुड़ैलें यहाँ विधारा में एक सदी से रह रही हैं। अब से पहले तो इन्होने कभी
अपनी मौजूदगी भी नहीं दिखाई मनुष्यों को फिर अब अचानक ही मनुष्यों के सामने प्रकट हो
जाना, और वह भी इस ख़ूँख़ार रूप में...”
कुछ देर की शांति के बाद। “तुम्हारी क्या युक्ति है? तुम वह बताओ ना पहले।” तेजस ने पूछा।
“इनका
ठिकाना ढूँढना होगा हमें और, क्या नाम बताया था उस चुड़ैल ने… हाँ अजरा, किसी भी प्रकार से हमें उस अजरा तक पहुँचना है।"
"विधारा
बहुत ही बड़ा और घना जंगल है, इतनी जल्दी उन्हे ढूँढ पाना कठिन होगा."
"जिस
चुड़ैल को हमने पकड़ा है, वह हमें लेकर जाएगी वहाँ।" विराट ने अंगद को जवाब दिया।
"किंतु
उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता है विराट, वो हमें आसानी से फँसा भी सकती है।"
"लेकिन
शौर्य, हमने अगर तलाश शुरू की तो उन चुड़ैलों की दृष्टि से बचकर
यह संभव नहीं होगा।"
तभी इथार का वह सेनापति हांफते हुए वहाँ पहुँचा। “महायोद्धा
शौर्य, वहाँ… वहाँ कनकपुरा में कोई आठ दस चुड़ैलें देखी गई हैं।” वह रुक
के साँस लेने लगा। “मुझे लगा आप इस अवसर का कोई सही उपयोग कर
सकते हैं।”
“कितना दूर है यह कनकपुरा?”
“कोई
आठ मिल दूर है यहाँ से।”
“धन्यवाद मित्र।”
“ऐसा ना कहिए महायोद्धा। यह युद्ध ना हो मेरी
ईश्वर से यही प्रार्थना है, सैनिक तो मेरे ही मारे
जाएंगे। अब तक बहुत सिपाही खो चुका हूँ।”
“अब और नहीं सेनापति विश्वजीत।” शौर्य ने कहा।
“देर किस बात की, चलो दबोचते हैं उन चुड़ैलों को।” देव ने कहा।
“नहीं, वहाँ केवल मैं जाऊँगा,
तुम्हें कुछ और करना है।” शौर्य यह
कहकर विश्वजीत की ओर घुमा। “सेनापति,
जैसे कि हमने मांग की थी आप तुरंत अपने सिपाहियों की तीन टुकड़ियाँ तैयार कीजिए।”
“जी महायोद्धा।” थोड़ा रुक के उसने फिर कहा।
“महायोद्धा, क्या मैं आपके कुछ काम आ सकता हूँ?”
शौर्य ने उसे एक क्षण देखा
और… “ठीक है सेनापति विश्वजीत, आप
मेरे साथ चलेंगे। अब तुम सब मेरी युक्ति ध्यान से सुनो...
End of the Chapter 10/55
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